मनोज की क़लम से,कर्म पर चिंतन…

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वाणी के बजाय कार्य से दिए गए उदाहरण कहीं ज्यादा प्रभावी होते हैं। कोरा उपदेश भी तब तक कोई काम नहीं आता जब तक उसे चरितार्थ न किया जाए।

वर्तमान समय की एक समस्या यह भी है कि आज की पीढ़ी करने में कम और कहने में ज्यादा विश्वास रखती है। किसी बात को केवल कहा जाए और किया न जाए तो वो रेगिस्तान में बरसे उन बादलों के समान ही है, जो बरसे तो जरूर हैं मगर किसी के काम न आ पाये। बरसते ही उनकी बूँदें रेत में समा जाती हैं।

प्रत्येक सफल आदमियों में एक बात की समानता मिलती है और वो ये कि उन्होंने केवल वाणी से नहीं अपितु अपने कार्यों से भी उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने जो कहा वो किया अथवा कहने की बजाय करने पर ज्यादा जोर दिया।

बिना पुरुषार्थ के हमारे महान से महान संकल्प भी केवल रेत के विशाल महल का निर्माण करने जैसे हो जाते हैं। हमारे पास संकल्प रूपी मजबूत आधार शिला तो होनी ही चाहिए मगर पुरुषार्थ रूपी पिलर भी होने चाहिए, जिस पर सफलता रुपी गगनचुम्बी महल का निर्माण संभव हो सके।

कहना जीवन की माँग नहीं, करना जीवन की माँग है। महत्वपूर्ण ये नहीं कि आप अच्छा कह रहे हैं अपितु महत्वपूर्ण तो ये है कि आप अच्छा कर रहे हैं। सृजनात्मकता जीवन की माँग ही नहीं अपितु अनिवार्यता भी है। इसलिए केवल अच्छा कहना नहीं अपितु अच्छा करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

🙏 *मनोज की क़लम से* 🙏


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