पूरे विश्व के हालात सामान्य नहीं है ,अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है और यह सब चीन से निकले कोरोनावायरस के चलते हुआ है ,भारत भी इससे अछूता नहीं है पिछले दो माह से करोना संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है और लॉक डाउन का तीसरा चरण खत्म होने को है और सरकार कुछ नियम और शर्तों के साथ में चौथा चरण लागू करने की तैयारी में है और ऐसी स्थिति में समाज का हर वर्ग आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है ,जहां एक और मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज घोषित किया है जिसमें कहा गया है कि इस पैकेज के माध्यम से हर वर्ग की मदद की जा रही है लेकिन हकीकत कुछ और ही कहती है।
सरकार की ओर से कहा गया है कि एक देश एक राशन कार्ड मान्य होगा एवं जहां अब तक गरीबी रेखा वाले पीले राशन कार्ड पर ही राशन दिया जाता था वहीं परिस्थितियों को देखते हुए मध्यमवर्ग की परेशानियों के मद्देनजर सरकार नया निर्णय लिया है कि अब सफेद राशन कार्ड जोकि अमूमन मध्यमवर्गीय के पास होता है एवं सामान्य परिस्थितियों में इस राशन कार्ड पर सरकार की और से दिए जाने वाले राशन का लाभ मिल नहीं मिलता है ,अब कोरोना संक्रमण के कारण लंबे समय का लॉक डाउन होने के कारण मध्यमवर्गीय को भी सफेद राशन कार्ड पर राशन उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया है, यहां तक कि सरकार की ओर से कहा गया कि अगर किसी के पास राशन कार्ड नहीं भी है उन्हें भी राशन दिया जाएगा।
लेकिन ऐसी कहावत है कि एक चना भाड़ नहीं पाड़ सकता, सरकार चाहे कितने भी आदेश एवं घोषणा करें लेकिन वास्तविकता में उसका पालन नहीं होता है या यूं कहें कि राज्य सरकार एवं प्रशासन उसका सख्ती से पालन करवाने में असमर्थ साबित होती है।
कुछ ऐसा ही इस घोषणा में भी हो रहा है सरकार ने सभी राशन कार्ड पर राशन देने की बात कही है लेकिन हकीकत में सरकारी राशन दुकानदारों द्वारा सफेद राशन कार्ड पर राशन नहीं दिया जा रहा है और कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार की तरफ से सफेद राशन कार्ड के राशन का आवंटन नहीं हुआ है एवं एक मध्यमवर्गीय जब राशन की दुकान पर राशन लेने पहुंचता है तब उसका मजाक उड़ाया जाता है की आप तो मध्यम वर्गीय हैं, सक्षम है आपको राशन की क्या आवश्यकता है ,आपको यहां राशन लेने नहीं आना चाहिए ,आपको शर्म आनी चाहिए आप किसी गरीब का हक मार रहे हैं इस प्रकार के ताने एक मध्यमवर्गीय को इस को रोना संकट की घड़ी में दिए जा रहे हैं जबकि इस कोरोना संकट से हर वर्ग आर्थिक संकट से जूझ रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मध्यमवर्ग की मदद के लिए यह आदेश दिया है लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य सरकार एवं प्रशासन क्या कर रहा है ?वह सिर्फ और सिर्फ मूकदर्शक बना हुआ है यहां हालात मध्य प्रदेश के उज्जैन नहीं बल्कि भारत के हर राज्य के हर जिले के हैं।
हालात यह है कि कालाबाजारी अपनी चरम सीमा छू रही हैं और हालातों का फायदा उठाकर जमकर लूटपाट मचाई जा रही है, इससे पहले भी सरकारी राशन की दुकानों पर आवंटित राशन ओने पौने दाम में होटलों एवं रेस्टोरेंट में बेचा जाता रहा है एवं सरकारी आंकड़ों में कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं, और ऐसा भी नहीं है कि सरकारी नुमाइंदों को इसका ज्ञान नहीं है लेकिन सब जानकर अनजान बने हुए हैं।
बाहर हाल इस देश की जनता विशेषकर मध्यमवर्ग, मोदी सरकार से यह सवाल पूछना चाहती है कि क्या एक मध्यम वर्गीय जिसे देश की रीड की हड्डी भी कहा जाता है एवं जो अपने स्वाभिमान और देश की आर्थिक व्यवस्था को अपने कंधे पर उठाए हुए हैं, क्या उसका इस महामारी के दौर एवं आर्थिक संकट के दौर में क्या यूं ही सरे बाजार अपमानित किया जाएगा ?और अगर नहीं तो मोदी सरकार अपने सिस्टम में झांक कर देखें कि उनके आदेश का अंतिम छोर तक पालन हो रहा है या नहीं, और अगर इसमें कोई रुकावट है तो उस पर उचित कार्रवाई की जाने की भी आवश्यकता है।
मैं आज बहुत दुखी और व्यथित मन से यह खबर लिख रहा हूं,जब एक मध्यमवर्गीय ने अपनी आप बीती सुनाई,दुःख इस बात का भी है कि 70 सालों की आजादी के बाद अपने खून पसीने से भारत की अर्थव्यवस्था को सींचने वाला मध्यमवर्गीय ,आज भी अपने वजूद को तलाश रहा है, सरकार को इस विषय पर प्राथमिकता से चिन्तन करने की आवश्यकता है।
