कोरोना के कुकुरमुत्ता स्वरुप पर रोक कैसे लगेगी?,रोकथाम के लिए जानकारों की रॉय ये है…

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50 दिनों के लगभग हो गए हैं, कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए लॉक डाउन को ,लेकिन अभी भी भारत के कई शहरों में कोरोना के पॉजिटिव मरीज रोज सामने आ रहे हैं ,वह भी जब की भारत में लॉक डाउन पिछले 50 दिनों से जारी है इसके पीछे के कारण को समझना बहुत आवश्यक है ,इसके विपरीत जिन देशों ने लॉक डाउन को लागू करने में देरी की वहां पॉजिटिव मरीजों की संख्या भारत से कई गुना ज्यादा है एवं मृत्यु दर भी बहुत ज्यादा है, लेकिन कोरोना के इस कुकुरमुत्ता स्वरूप पर पूर्णताः  रोक कैसे लगाई जाए?, यह सवाल आज सबके मन में है क्योंकि लॉक डाउन भी आखिर कब तक? 

जानकारों का मानना है कि लॉक डाउन किया जाना अच्छा फैसला है लेकिन इस लॉक डाउन के दौरान शासन प्रशासन को कुछ कदम जो उठाना जरूरी थे वह नहीं उठाएं गए ,मसलन कई शहरों में कंटेनमेंट एरिया में संदिग्ध मरीजों की जांच का अभियान छेड़ा जाना था एवं प्रत्येक घर में संदिग्ध मरीजों की जांच कि जाना थी ताकि मरीजों की पहचान समय पर की जा सकती, क्योंकि लोगों में कोरोना का खोफ़ लोगों में इतना ज्यादा है कि घरों में लोगों को कोरोना लक्षण होने के बाद भी लोगों ने प्रशासन को नहीं बताया और आज भी यही हो रहा है, जबकि प्रशासन लोगों के द्वारा पूरे गली मोहल्लों संक्रमित करने के बाद पता चल रहा है और तब तक बहोत देर हो चुकी होती है ,इसके बाद प्रशासन उस एरिया को कंटेन्मेंट एरिया घोषित कर देता है लेकिन सघन जांच न होने के चलते कुछ ही दिनों के बाद फिर मरीज निकलते हैं।

दूसरा कारण यह है कि प्रशासन ने लॉक डाउन तो किया लेकिन लोगों की रोजमर्रा की चीजों को घर तक नहीं पहुंचा पाया, जिसके चलते लोगों का घर से निकलना जारी रहा , प्रशासन को लोगों को अगर घरों में रोकना है तो आवश्यक सामग्री की घर पहुंच उपलब्धता करानी होगी,जमकर काला बाज़ारी भी हो रही है,लोगों के घर से बाहर इन वस्तुओं की तलाश में कोरोना एक जगह से दूसरी जगह फ़ेल रहा है, राहत सामग्री में भी जमकर राजनीति ओर हेराफेरी हुई ,लोग घरों में रहे ओर राहत सामग्री कहां बँटी इसका कोई हिसाब किताब नहीं है।

“जानकारों की मानें तो उनके दृष्टिकोण से प्रशासन को लॉक डाउन में पूरे शहर में एरिया वाइस दिन बांट कर उस दिन उस एरिया में दलबल सहित सघन जांच अभियान चलाया जाना चाहिए, ताकि किसी घर मे कोई कोरोना प्रशासन से आँख मिचौली कर रहा हो तो वह पकड़ में आ जाये और उसका समय पर बिना दूसरों को संक्रमित किये इलाज किया जा सके,अन्यथा यह कुकुरमुत्ते का खेल बन्द नहीं होगा, ओर प्रशासन बिल्ली की भांति चूहे के पीछे दौड़ लगाता रहेगा”।

जानकारों का कहना है कि अभी भी प्रशासन के पास में लॉक डाउन की घोषित अवधि में 10 दिन बाकी है ,प्रशासन को जिले के हर शहर में,  हर तहसील में ,पूरे शहर के एरियों को दिन के हिसाब से बांटकर सघन जांच अभियान की शुरुआत करनी चाहिए , एवं संदिग्ध मरीजों को अलग करके उनकी जांच करनी चाहिए ताकि उनका समय पर इलाज किया जा सके एवं संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके, वहीं औद्योगिक क्षेत्र भी अब खुल चुके हैं अतः यहां भी सघन अभियान चलाने की आवश्यकता है एवं काम करने वाले श्रमिकों में संक्रमित  लोगों की  जांच की जाना चाहिए, अन्यथा  लॉक डाउन खोलने के तुरंत बाद  मरीजों की संख्या में  भयंकर  इज़ाफ़ा  होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता एवं तब स्थिति को संभालना बहुत मुश्किल हो सकता है।

इससे पूर्व अगर उज्जैन की बात करें तो प्रशासन ने एक सर्वे कराया था जिसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं आशा कार्यकर्ताओं द्वारा घर घर जाकर पूछा गया था कि घर में किसी सदस्य को सर्दी जुकाम बुखार तो नहीं है लेकिन उसमें लोगों ने कोरोना के इलाज करने की प्रक्रिया के खौफ के चलते ग़लत जानकारी कई इलाकों में दी गई ,लेकिन बाद में वहां कोरोना के मरीज पाए गए इस कारण प्रशासन को इस लॉक डाउन का फायदा उठाते हुए घरों में मौजूद लोगों का एरिया वाइज दिन के हिसाब से सघन जांच अभियान “दल बल “के साथ की जाने की आवश्यकता है तभी प्रशासन को हर एरिया की वास्तविक स्थिति की पहचान हो पाएगी एवं कोरोना की चैन को तोड़ा जा सकेगा ,वहीं आवश्यक सामग्री की घर पहुंच सेवा भी शुरू करना आवश्यक है ताकि लोगों को घर से बाहर निकलने से रोका जा सके।

अन्यथा इस लॉक डाउन का एवं कोरोना का अंत निकट भविष्य में होता दिखाई नहीं पड़ता, इसे हराने के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य किए जाने की आवश्यकता है।

 

 

 


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