अराजकता के पीछे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से कौन है जिम्मेदार…

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मध्य प्रदेश का ,राजस्थान का ,उत्तर प्रदेश का कोई शहर हो या स्वयं राजधानी दिल्ली ,नागरिकता संशोधन कानून से इनमें रहने वाले किसी भी नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म संप्रदाय का हो की नागरिकता खत्म नहीं होने वाली है और ना ही सरकार द्वारा एनआरसी देश में लागू करने का कोई प्रारूप अभी तैयार किया गया है ऐसे में सवाल यह उठता है कि पूरे देश में CAA के खिलाफ धरना प्रदर्शन, विरोध प्रदर्शन ,आगजनी तोड़फोड़, हिंसा ,अराजकता का यह माहौल कैसे परवान चढ़ रहा है , आखिर कौन हैं यह लोग जिनका प्रत्यक्ष रूप से नागरिकता संशोधन कानून  के विरुद्ध धरना प्रदर्शन, विरोध प्रदर्शन ,आगजनी, तोड़फोड़ करने वालों को समर्थन है, प्रदर्शनकारी यह बताने में असमर्थ हैं कि उनका नागरिकता संशोधन कानून से विरोध किस प्रकार से है ,उनकी सरकार से क्या मांग है, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की प्रमुख वजह क्या है ,इस प्रकार के कई  प्रश्न है जिनका धरना प्रदर्शनकारियों के पास कोई उत्तर नहीं है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों को अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों का सपोर्ट मिल रहा है ऐसे में सवाल देश की जनता के मन में यह भी आता है की आखिर कौन से राजनीतिक दल हैं जो अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के चलते देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं एवं देश में अराजकता का माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षया सोनिया गांधी ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध करने की बात कही और साथ ही अपील भी कि ,उन्होंने कहा कि लोगों को घर से बाहर निकलकर इसका विरोध करना चाहिए ।

दिल्ली का चुनाव  शाहीन बाग़ के इर्दगिर्द रहा ,शाहीन बाग़ मैं बैठे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनकारियों को किसका सपोर्ट मिल रहा है और क्यों, इसका ना तो कांग्रेस पार्टी के पास कोई जवाब है ,ना आम आदमी पार्टी के पास,ओर ना ही केंद्र सरकार ,लेकिन जवाबदेही दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी बनती है एवं केंद्र सरकार की भी।

आम आदमी पार्टी के नेता अमानतुल्लाह खान ने सरे बाजार मुस्लिम समुदाय को उकसाने , भड़काने का काम करते हुए कहा कि केंद्र सरकार सीएए ऐनआर सी के बाद मुस्लिमों की अजान पर भी प्रतिबंध लगाएंगे दाढ़ी और बुर्के पर प्रतिबंध लगाएगी।

सवाल यह भी है कि दिल्ली चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से हुए ,शाहीन बाग़ में भी शांति रही ,लेकिन चुनाव के ठीक बाद तब जब अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत दौरा चल रहा था तब अचानक दिल्ली में दंगो का भड़कना ,आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के घर से पेट्रोल बमों,पथ्थरों ,एसिड की बोतलों का ज़खीरा मिलना,एवम वीडियो फुटेज में ख़ुद पार्षद का हतियार लिए घूमतेपाए जाने के बाद भी आमआदमी पार्टी की ओर से बचाव करना, दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री का कहना है कि दंगाई दिल्ली के बाहर के थे और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिये, क्या वास्तविक में दिल्ली के मुख्यमंत्री की दिल्ली के प्रति यही नैतिक जिम्मेदारी बनती है?

सवाल यह भी है कि केंद्र सरकार जिसके अधीन दिल्ली पुलिस आती है ,दंगों को रोकने में नाकामयाब रही ,दिल्ली आग में झुलस गई और केंद्र और राज्य सरकार मूकदर्शक बनी रही।

बहरहाल देश की राजधानी ,अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने जली ओर कुछ लोगों द्वारा यह दर्शाने की कोशिश की गई कि भारत मे सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीति का कद देश से ऊपर है,  यह वास्तविक में जनता के राजनैतिक दलों पर किये विश्वास पर सवालिया निशान  लग रहा ,राजनैतिक महत्वाकांक्षा अपनी चरम सीमा पर है जो देश की एकता और अखंडता को भंग करने को आतुर है, लेकिन जिम्मेदारी सरकार की है ,जनता ने देश की बागडोर सरकार के हाथों में  सौंपी है।

केंद्र सरकार को अराजकता फैलाने वालों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है, वहीं जनता को भी राजनैतिक दलों के भड़कावे में न आकर संयम बरतने की आवश्यकता है।

 


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