इन दिनों मध्यप्रदेश में माफिया शब्द बहुत चर्चित एवम प्रचलित है और इसी संदर्भ में कमलनाथ सरकार माफियाओं को ढूंढ ढूंढ कर उन पर कार्रवाई कर रही है उनके घरों को तोड़ा जा रहा है उनके परिवार को बेघर किया जा रहा है ,हाल ही में इंदौर के बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कमलनाथ सरकार पर यह तक आरोप लगाया कि माफियाओं को लिस्टेड किया जा रहा है एवं 10 में से एक पर कार्रवाई करके बाकी नौ से अवैध वसूली की जा रही है।
ऐसे में जनता के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह माफिया है क्या ?,आखिर माफिया की परिभाषा क्या है? ,’माफिया’ शब्द जो मूल रूप से इटली से प्रचलित हुआ है इसका इस्तेमाल आम तौर पर उन लोगों के लिए करते हैं, जो दबंग किस्म के होते हैं या जिनके संरक्षण में अपराध फलता-फूलता है,भारत में किसी भी राह चलते अपराधी को माफिया की संज्ञा दे दी जाती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर माफिया का अर्थ एक ऐसा दबंग इंसान जिसका दबदबा हो एवं जिसने अनैतिक रूप से धन कमाया हो जिसके संरक्षण में अपराध फलता फूलता हो तो ऐसे में भारत में जितने भी राजनीतिक दल हैं एवं उसमें जितने भी राजनेता हैं, उनके इतिहास की सही पड़ताल की जाए तो भारत में 90% राजनेता जब अपने आप को आईने में देखेंगे तो वह माफिया शब्द का सही अर्थ एवं पहचान को भली-भांति समझ एवं देख पाएंगे।
भारत में यह बड़ी विडंबना की बात है की राजनीतिक क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां करीब करीब हर दूसरे राजनेता पर हजारों करोड रुपए के घोटाले अर्थात सरकारी संपत्ति या जनता के पैसों का अनैतिक लेन देन या अर्जन करने का आरोप लगा होता है,राजनीति में एक रोडपति ,5 साल में अरबपति कैसे बन जाता है इसका हिसाब किताब पूछने वाला कोई नहीं, राजनेताओं पर हत्या ,बलात्कार, गुंडागर्दी के कई आपराधिक प्रकरण दर्ज होने के बाद भी उनको चुनाव लड़ने के लिए सलाखों के पीछे भी इजाजत मिल जाती है ,लगभग हर तीसरे राजनेता की सरपरस्ती में अपराधी फूलते फलते हैं लेकिन यहां उस राजनेता का नाम बड़े गर्व से “बाहुबली “के रूप में लिया जाता है ,लोकतंत्र के मंदिर में विराजमान होने के लिए नेता जी को किसी प्रकार की कोई शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती, तमाम अंगूठा छाप राजनेता ,विधायक ,सांसद एवं मंत्री पद को सुशोभित करते हुए आसानी से नजर आ जाएंगे, जिनकी मानसिकता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है, सरकार की 95% योजनाओं में राजनेताओं की हिस्सेदारी होती है ,भूमि ,शराब ,खनन ,रोड ,पेट्रोलियम, शिक्षा ,स्वास्थ्य इन सभी क्षेत्रों में राजनेताओं की सीधे तौर पर पेठ होती है, सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के नाम पर अनैतिक लेनदेन का राजनेताओं का एक प्रमुख जरिया माना जाता है हर साल राजनेता की सरकारी कर्मचारियों से अरबो रुपयों की अनैतिक कमाई इसके माध्यम से होती है, ऐसे में जिसे सरकार माफिया के रूप में प्रदर्शित करती है, भूमाफिया,शराब माफिया ,खनन माफिया या अनैतिक रूप से पैसा अर्जित करने वाला गुंडा बदमाश क्या यह सब ही माफिया की श्रेणी में आते हैं?, जो दरअसल में राजनेताओं के प्रतिबिंब होते हैं, क्योंकि माफिया शब्द की उत्पत्ति एवं सरपरस्ती राजनेताओं से जुड़ी है ,तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस माफिया शब्द से नेताजी कैसे अछूते रह जाते हैं और यहां पर उनके आगे बाहुबली शब्द कैसे लग जाता है और वह बाहुबली रूपी शब्द नेताजी के सम्मान और कीर्ति का प्रतीक कैसे बन जाता है ।
ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या किसी व्यक्ति के आगे माफिया शब्द लगाकर उसके परिवार को घर से बेघर कर देना, क्या यह सरकार का उचित कदम है?, क्या इस लोकतांत्रिक देश में कोई न्यायिक प्रक्रिया भी है या नहीं और क्या वास्तविक में न्यायिक प्रक्रिया सरकार को यह कदम उठाने का अधिकार देती है ?,आरोप यहभी है कि राजनेताओं एवम अधिकारीयों के हनीट्रैप में फसे होने के चलते ध्यान भटकाने एवम माफिया नाम देकर मुँह बंद करने की कोशिश की जा रही हैं,अगर कोई गुंडा ,बदमाश या आपराधिक प्रवृत्ति एवं अनैतिक लेनदेन करने वाला कोई व्यक्ति है तो लोकतंत्र में न्यायालयीन व्यवस्था के तहत उसके अपराधों की सजा तय की जाती है।
यहां दूसरा पहलू है “हनी ट्रेप”, मध्य प्रदेश में पिछले दिनों एक बड़ा खुलासा हुआ था जिसके तार कई राजनेताओं एवं कई बड़े अधिकारियों से जुड़े होने की आशंका जताई जा रही थी ,अभी प्रदेश में हनी ट्रैप का मामला शांत है और “माफिया” का मामला गर्म है,आशंका यह जताई जा रही है कि यही सिक्के के दोनों पहलू है,माना यह भी जा रहा है कि सरकार ने एक तीर से कई निशाने लगाएं हैं, राजनेता और माफिया दोनों एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं आज का माफिया कल का राजनेता एवं आज का राजनेता कल का माफिया कहलाए इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं ,ओर माफिया कोई भी हो कानून सबके लिए बराबर एवम सज़ा सबको मिलनी चाहिए।
बहरहाल आजकल के इस परिदृश्य में राजनेताओं को भी आईना देखने ओर दिखाने की आवश्यकता है अन्यथा यह शह और मात का खेल यूं ही चलता रहेगा, एवं आम जनता माफिया एवं राजनेता में फर्क महसूस नहीं कर पाएगी, वहीं जनता को भी यह समझना होगा कि चुनाव के वक्त जो मानव सेवा को देश सेवा का भाव लेकर जनता को गुमराह करके सत्ता में जगह पा लेते हैं एवं लाखों रुपए खर्च कर चंद सालों में जनता के विश्वास को धता बताकर अनैतिक तरीकों से अरबो रुपए अरिजीत कर लेते हैं वहीं आम जनता वोट देकर अपने आप को असहाय महसूस करती है ऐसे में चुनाव के वक्त सही उम्मीदवार की पहचान जनता को करनी होगी।
