कोई कहता है कि कानून को इतना सख्त बनाएं कि कोई दरिंदा किसी बेटी के साथ घिनौनी वारदात ना कर पाए ,उसेेे फांसी दी जाए ,कुछ का कहना हैै कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई जाए जिसमें जल्द से जल्द अपराधी को उसकेेे किए की सजा मिल सके ,लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सब कदम लगभग हर रोज पूरे देश में , हर राज्य में बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी को रोक पाने के लिए काफी है?
कोई परिवार यह जानने की कोशिश नहीं करता कि उनके बच्चे का रहन सहन चाल चलन एवं मानसिकता का स्तर किस ओर जा रहा है कोई समाज जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता की हमारी भारतीय संस्कृति हमारे समाज से , परिवारों से विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस तरह बेटियों के साथ घिनौने कृत्य होने के बाद विरोध स्वरूप आक्रोश प्रगट करना एवं मोमबत्ती जलाकर उस आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करना, क्या समाज की जिम्मेदारी बस यहीं पर खत्म हो जाती है?, क्या ऐसा करने से वहशी दरिंदों की मानसिकताा में परिवर्तन हो पाएगा? शायद नहीं.
दिल्ली की निर्भया एवम हैदराबाद की डॉक्टर रेड्डी ,इनके साथ हुए घिनोने कृत्य, जो जनता के सामने उजागर हुए हैं, लेकिन छोटे छोटे गांवों में शहरों में इस तरह के घिनौने कृत्य होते हैं ,छोटी-छोटी बच्चियों को वहशी दरिंदे अपनी हवस का शिकार बना कर उनकी हत्या कर देते हैं लेकिन आम जनता तक यह जानकारी पहुंच नहीं पाती, लेकिन सवाल फिर वही है की क्या कुछ दरिंदों को उनके किये की सज़ा देने भर से बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी रुक जाएगी?,क्योंकि मानसिक दरिंदगी को पैदा करने वाले संसाधनो के चलते व्यक्ति के मस्तिष्क में दरिंदगी रोज़ पनप रही है, मानसिक रोग विशेषज्ञों का यह माननाा है की इसे मानसिक रोग कहा जा सकता है विशेषज्ञों का मत है कि भारतीय संस्कृति में पिछले कुुुछ सालों में जबरदस्त बदलाव देखा गया है जिसके चलते सामूहिक परिवार जिसमें दादा- दादी ताऊ- ताई चाचाा -चाची भाई- बहन सब एक साथ संयुक्त निवास करते थे जहां परिवार का हर एक सदस्य अनुशासन की डोर से बंधा होता था,संयुक्त्त परिवार लगभग खत्म होने से आजकल की युवा पीढ़ी के रहन सहन एवं मानसिकता पर गहरा असर देखा जा रहा है ,भााागदौड़ भरी जीवनशैली के चलते माता पिता, यह तक जाननेे की कोशिश नहीं करते की उनके बच्चों की दिनचर्या क्या है ,वहीँ मनोरंजन की आड़ में अश्लील वेबसाइट एवं मोबाइल एप्स पर खुलेआम अश्लीलता परोसी जा रही है जिस पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है , और माता-पिता को इतनी फुर्सत नहीं कि वे यह देखें कि कहीं उनका बच्चा इस तरह की अश्लील वेवसाइट तो नही देख रहे ,बच्चों की मानसिकता को वहशी बनाने में इनकी प्रमुख भूमिका होती हैं, सरकार को चाहिए कि इस प्रकार की वेबसाइटो के भारत मे प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाये।
केंद्र एवम राज्य सरकार ,महिला एवम बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दोनों की बराबर होती हैं, अब वक्त की मांग है कि सरकार महिला सुरक्षा जागरूकता अभियान की शुरुवात करें एवं एक विशेष पुलिस बल हो जो सिर्फ महिला सुरक्षा पर ही सक्रिय हो, शराब की दुकानों के आसपास असामाजिक तत्वों की पहचान की जाय, एक देश भर में महिला सुरक्षा मोबाईल एप सरकार की ओर से लांच किया जाय, ये जनता के सुझाव है सरकार के लिए, वहीँ हर धर्म के धर्मगुरु भी यह जिम्मेदारी तय करें कि जिस धर्म को समाज को वह मार्गदर्शित करते हैं उसमें बच्चों में संस्कार ,शिक्षा, एवम परवरिश का ज्ञान पलकों को दिया जाय,सामाजिक संगठन भी इसके लिए आगे आएं , हर समाज मे महिला एवम बेटियों की सुरक्षा के लिए एक संगठन हो जो इस विषय मे अपनी जिम्मेदारी तय करें,हर माता पिता की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों की दिनचर्या ,रहन सहन पर विशेष ध्यान दें, उन्हें अनुशाषित परवरिश दें,क्योकि कुकृत्य से पीड़ित बेटियां भी किसी ना किसी माता पिता की होती है ,वहीं दुष्कर्म करने वाला दुष्कर्मी भी किसी माता पिता का बेटा होता हैं, अतः हर पहलू में जिम्मेदारी माता पिता की भी बनती हैं।
मानसिकता में स्वच्छता ,एवम अनुशात्मक संस्कार से भी कुछ हद तक बेटियों के साथ हो रहे घिनोने कृत्यों पर रोक लगाई जा सकती हैं ,वहीँ कानून में सख्ती तो एक महत्वपूर्ण बिंदु है ही।
