उत्पादन करता अपनी वस्तु को जब बाजार में बेचता है, तब उस वस्तु का मूल्य वह स्वयं तय करता है लेकिन यह बड़ी विडंबना है कि हिंदुस्तान का अन्नदाता किसान ही उत्पादकों मैं अपवाद बना हुआ है ,जो अपने उत्पाद के मूल्य का निर्धारण स्वयं नहीं कर पाता बल्कि उसके उत्पाद का मूल्य निर्धारण अन्य व्यापारी करते हैं ,जो किसान से मनमाने भाव में उसकी उपज को खरीदते है एवं उसी उपज का कई गुना मूल्य बढ़ाकर बाजार में बेचता है और गाढ़ा मुनाफा कमाते है।
ऐसा नहीं है कि सरकार इस अंधे कानून से अनभिज्ञ है ,लेकिन पिछले 70 सालों से किसी सरकार, किसी राजनीतिक दल ने किसानों के साथ हो रहे इस अन्याय पर लगाम लगाने की पहल नहीं की ,नहीं चाहिए किसानों को किसी सरकार से मदद, नहीं चाहिए कर्ज माफी, नहीं चाहिए मुफ्त बिजली, किसान की चाह सिर्फ इतनी भर है की उसे उसकी फसल का वाजिब दाम मिले ,होता क्या है कि जब किसान अपनी फसल को मंडी में लाता है तब कुछ मुट्ठी भर व्यापारी उसकी फसल का दाम तय करते हैं, किसान सब्जी बड़ी मेहनत से उगाता है लेकिन उसे सरेबाजार नीलम करने पर मजबूर होता है अर्थात कुछ लोग मिलकर बोली लगाकर उसका मूल्य तय कर लेते हैं, किसान को उस मूल्य को मान्य करना होता है।
बहरहाल जहां एक और मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को किसानों के 2 लाख तक के कर्ज माफी के वादे के साथ सत्ता में आए 1 साल पूरा होने को है, किसानों की माने तो, ना तो कर्ज माफी हुई ,न पिछले साल की सोयाबीन का भाव अंतर मिला, ना इस बार की बारिश के चलते सोयाबीन की फसल में हुए नुकसान की भरपाई मिली, बिजली मनमाने दामों पर मिल रही है ,किसान अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ,तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष मैं बैठी भाजपा को किसानों का दर्द 1 साल बाद महसूस होने लगा है, भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने 4 नवंबर को उज्जैन में किसान आक्रोशित रैली मैं कमलनाथ सरकार को आड़े हाथों लिया ,ऐसे मैं कुछ लोगों के मन में संशय उत्पन्न हुआ कि आखिर भाजपा को किसानों का रहनुमा बनने में 1 साल का वक्त क्यों लगा, कुछ का कहना है कि टाइगर अभी जिंदा है तो कुछ का कहना है कि बंगाल के टाइगर की मध्य प्रदेश में दस्तक , तो चर्चा दिग्गी दादा की गोपनीय एवं उचक बैठकों की भी है, अब किसानों के हित की बात कौन करेगा,एवम किसान अब किस पर भरोसा करेगा, यह तो समय ही बताएगा।
कांग्रेस ने भी सोयाबीन के मुआवजे में केंद्र के मदद नहीं करने का आरोप लगाकर केंद्र सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया, चर्चा यह भी है कि राजनीतिक दल मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में होने वाले पंचायत चुनाव की तैयारी एवं रूपरेखा बना रहे हैं ,चुनाव आने तक गेहूं चने की फसल आ जाएगी एवं किसान कुछ राहत महसूस कर नफा नुकसान भूल जाएगा ,तब नेताजी उसके दरवाजे पर हाथ जोड़ें तैयार खड़े मिलेंगे ।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक इस देश के अन्नदाता को छला जाता रहेगा ,क्या कभी उसको चंद सिक्कों में ना तोल कर ,कोई सरकार किसान का मोल पहचान कर उसकी फसल का वाजिब मोल देकर न्याय करेगी।
