चौथे स्तंभ का चुनाव

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उज्जैन के पत्रकार संगठन सोसायटी फॉर प्रेस क्लब मैं चुनाव के लिए तारीख 22 अक्टूबर 2019 घोषित की गई, जहां एक बार फिर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष ,सचिव ,कोषाध्यक्ष ,एवं कार्यकारिणी का चयन किया जाएगा ,चुनाव की तारीख का एलान 4 अक्टूबर को किया गया लेकिन चुनाव की तारीख की घोषणा के दिन ही बवाल खड़ा हो गया ,पूर्व के चुनाव में सहायक अधिकारी रहे इंदौर के अधिवक्ता अनिल नायडू 2019- 21 के मुख्य चुनाव अधिकारी बनाए गए, सोसाइटी फॉर प्रेस क्लब के फाउंडर मेंबरों ने  इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा कि चुनाव अधिकारी बाहर का ही क्यों लिया जा रहा है वह भी फाउंडर मेंबरों की सहमति के बगैर एवं साधारण सभा की बैठक किए बिना, आपत्ति इस बात पर भी जताई गई कि पूर्व के चुनाव में इन्हीं अधिकारी की मौजूदगी में चुनाव के दौरान धांधलियां की गई इन आरोपों के चलते पत्रकारों द्वारा सोसाइटी फॉर प्रेस क्लब पर न्यायालय में वाद चल रहा है ,ऐसे में अनिल नायडू को मुख्य चुनाव अधिकारी बनाने पर निष्पक्ष चुनाव होने पर संदेह होने के चलते फाउंडर मेंबरों एवम अन्य पत्राकारों द्वारा यह मांग की गई कि चुनाव अधिकारी स्थानीय होना चाहिए ।

पत्रकार शैलेंद्र कुल्मी, महेंद्र सिंह बेस, निरुक्त भार्गव, रमेश दास ,संदीप मेहता ,सचिन गोयल सहित कई पत्रकारों ने इस निर्णय को अनुचित ठहराते हुए यह कहा की चुनाव की तारीख का ऐलान किया गया लेकिन पत्रकारों की मतदाता सूची प्रेषित नहीं की गई ,बगैर मतदाता सूची  चस्पा किए चुनाव के क्या मायने रह जाएंगे, इस पर दोनों गुटों में वाद विवाद का दौर चला ,बाद में चुनाव अधिकारी की नियुक्ति एवं प्रक्रिया के विरोध स्वरूप नियुक्ति पत्र को जलाया गया एवं आवश्यक संशोधन करने हेतु पत्र वर्तमान अध्यक्ष विशाल हाड़ा को दिया गया। पत्रकार शैलेंद्र कुल्मी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आज 4 तारीख को चुनाव का ऐलान किया गया एवं आचार संहिता 9 तारीख से लागू होगी ऐसा कैसे संभव है ,मतदाता सूची प्रेषित नहीं की गई है ऐसे में पूर्व की तरह मतदाता सूची में हेरफेर की संभावना बढ़ जाती है एवं गैर पत्रकारों की वास्तविक पत्रकार होने की पुष्टि किए बगैर शामिल किया जा सकता है, प्रेस क्लब के सदस्यों में गैर पत्रकारों के शामिल होने पर आपत्ति लेते हुए  उन्हें सूची से बाहर करने एवं उनकी सदस्यता समाप्त कर निर्धारित पत्रकार सूची के आधार पर  निष्पक्ष चुनाव करने ने की बात भी उनके द्वारा की गई।

बहरहाल सोसाइटी फॉर प्रेस क्लब उज्जैन के चुनाव में एक तरफ आनन-फानन में चुनाव कराने की सरगर्मी चल रही है तो दूसरी और आपत्तियां दर्ज करा कर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, ऐसे में प्रेस क्लब उज्जैन का चुनाव निष्पक्ष एवं निर्विघ्न संपन्न होगा या कुछ फेरबदल होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ जो कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों के  क्रियाकलापों का निष्पक्षता से मूल्यांकन कर सत्य को उजागर करता है, उसी तरह कलमकारों के अपने आईने में भी सत्य एवं निष्पक्षता का प्रतिबिंब दिखना आवश्यक है , पत्रकारों के संगठन में गैर पत्रकार, राजनीतिज्ञ, कारोबारियों के शामिल होने से पत्रकार की वास्तविक छवि धूमिल हो सकती है जोकि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा सकती हैं।


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