बरसात का मौसम चल रहा है सड़कों पर पानी जमा होने के चलते कीचड़ एवं फिसलन होने के कारण वाहन चालकों के लिए वाहन चलाना जान का जोखिम हो चला है, लेकिन उससे भी बड़ी परेशानी एवं एक्सीडेंट की प्रमुख वजह है, सड़कों पर आवारा मवेशियों का खुलेआम घूमना।

उज्जैन शहर में कोई ऐसी सड़क, गली ,मोहल्ला, चौराहा नहीं बचा, जहां आवारा मवेशियों (गाय, कुत्ता ,सूअर) का हुजूम ना दिखे ,जिसे देखकर भी आंखें बंद करने वाले निगम प्रशासन की मंशा स्पष्ट हो रही है कि वह किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है ,यूं तो उज्जैन नगर निगम कमिश्नर लेडी सिंघम केे नाम से शुमार है, जिन्हें सख्त फैसले लेने एवं उसको सख्ती से अमल में लाने के लिए यह नाम मिला है, लेेकिन शहर के इस परिदृश्य को देखकर लगता है कि सिंघम अभी गहरी निद्रा में है ।
शहर में कितने ही कलेक्टर एवं निगम कमिश्नर आए और आवारा पशुओं के सड़क पर आम घूमने से रोकने के लिए धारा 144 तक लगाई, कई पशुपालकों पर प्रकरण भी दर्ज किए लेकिन प्रशासन का ढोर मैनेजमेंट(पशु प्रबन्धन) फैल ही रहा, इस परिस्थिति के लिए सिर्फ स्थानीय प्रशासन ही जिम्मेदार नहीं है, इसका दूसरा पहलू भी है जिसमें अहम भूमिका निभाते हैं, जनप्रतिनिधि, प्रशासन जब भी आवारा पशुओं के नियंत्रण के लिए सख्त होता है एवं पशुओं को पकड़कर पशु बाड़े में डाला जाता है, तब पशुपालक अपने हितेषी जनप्रतिनिधियों को ढाल बनाकर प्रशासन पर दबाव डालकर पशुओं को पुनः मुक्त करा लेते हैं, और फिर वही ढाक के तीन पात।
शहर में न सिर्फ पशु गाय, बल्कि 20 -20 ,25 -25 के झुंड में कुत्तों एवं सूअरों ने भी सड़कों पर एवं कालोनियों में अपना डेरा डाल रखा है ,जिससे आम नागरिक एवं उनके बच्चों की जान का खतरा बना रहता है ।
बहरहाल प्रशासन को इस विषय पर सख्ती दिखाने की आवश्यकता है ,क्योंकि इससे स्वच्छता अभियान पर तो पलीता लग ही रहा है लेकिन एक्सीडेंट होने की संभावना के चलते लोगों की जान का भी खतरा बना हुआ है, सड़कों पर आवारा पशुओं के कारण कोई बड़ा हादसा हो ,इससे पहले प्रशासन को अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए सख्ती दिखाने की आवश्यकता है।

