सच्चे मित्र बिना है ,जीवन रिक्त

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भगवान श्री कृष्ण का अवतार एक ऐसा अवतार रहा  जिसमें  बाल लीला से लेकर  महाभारत तक  इस संसार को  मानव जीवन की सभी अवस्थाओं के अनुभवों से  अवगत कराया, बाल्यकाल से  ही दुष्टों का सम्हार करते हुए  उन्होंने यह संदेश दिया कि जीवन में कितनी ही विपदा  क्यों ना आए इंसान  सत्य  और धैर्य  के साथ अडिग रहकर विपदा का मुकाबला करता है तब दुश्मन बलवान होने के बाद भी परास्त हो जाता है।

श्री कृष्ण का बाल्यकाल कई कठिनाइयों को प्रदर्शित करता है वहीं यह  सन्देश  भी देता है की कठिनाई आने पर इंसान को कभी विचलित नहीं होना चाहिए ।

भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के संदेश में  मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग का उल्लेख किया गया है और वह है  “मित्रता”, इंसान के जीवन में एक सच्चा मित्र का होना अति आवश्यक है ,वह कोई भी हो सकता है भाई ,बहन ,पत्नी ,संगी ,साथी ,मित्र के बगैर जीवन का अधूरा माना गया है भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला मैं मित्रता को निभाने की पराकाष्ठा का प्रदर्शन किया है ,मित्र वही जो दुख सुख ,हानि लाभ, जस अपजस, मैं अपने मित्र का परछाई बनकर साथ दे और जिसके जीवन में एक ऐसा सच्चा मित्र हो उसका जीवन धन्य हो जाता है ।

भगवान श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा ऋषि सांदीपनि के उज्जैन स्थित आश्रम में ग्रहण की, जहां उनके सहपाठी थे “सुदामा”,   सुदामा  श्री कृष्ण के  परम मित्र कहलाए, श्री कृष्ण के साथ  जब सुदामा  लकड़ी लेने  जंगल  की ओर  रवाना हुए  तब  गुरु माता  ने  कुछ मुट्ठी चने पोटली में बांधकर सुदामा को दिये  और कहा कि   भूख लगे तो दोनों मिलकर खा लेना ,लकड़ी का गट्ठर लिए कृष्ण और सुदामा जंगल से गुजर रहे थे कि अचानक वर्षा प्रारंभ हो गई और वह एक  स्थान पर रुक कर वर्षा के रुकने का इंतजार करने लगे ,बारिश के दौरान भूख लगने के चलते पूरे चने अकेले सुदामा के ही खा जाने पर  भगवान श्री कृष्ण ने उपदेश दिया कि हे सुदामा मित्रता का मूल सिद्धांत है ,एक दूसरे के प्रति दृढ़ विश्वास, ईमानदारी ,एवम प्रेम होना आवश्यक है, मित्रता वही जो मित्र के बिना कहे उसके मन की बात जान ले।

जिस स्थान पर वह रुके थे उज्जैन के समीप उस स्थान को नारायणा ग्राम के नाम से जाना जाता है यहां  आज भी  वह लकड़ी के गट्ठर  विद्यमान है  एवं  दुनिया में  एकमात्र मित्रता के प्रतिक के रूप में  कृष्ण एवं सुदामा का मंदिर  है, ऐसा माना जाता है कि जो भी  व्यक्ति  यहां मित्रता की मूरत  के  दर्शन करता है  उसे जीवन में  सच्चा मित्र  जरूर मिलता है ,एवम मित्रता निभाने की प्रेरणा मिलती है ,श्री कृष्ण ने संदेश दिया  की मित्रता  करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है मित्रता निभाना,श्री कृष्ण सुदामा मिलन इसका जिवंत प्रसंग है ,

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

मित्रता  में धनवान, निर्धन,लोभ, मोह ,ईर्ष्या, कपट ,अहंकार का कोई स्थान नहीं है,मित्रता तो प्रेम ,त्याग, तपस्या, एवम अटूट विश्वास का प्रतीक है।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने भाई एवम सखा अर्जुन का महाभारत में अंतिम क्षण तक विपत्ति में साथ दिया ,वहीं सखी द्रोपदी की लाज के रक्षक बने।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने उपदेश में कहा है कि  जीवन मे विपदा ही सच्चे मित्र से परिचय कराती हैं।

मित्रता का प्रतीक स्थल नारायणा ,उज्जैन से 30 किलोमीटर महिदपुर जाने के रास्ते मे स्थित है ।

जीवन मे मित्र के महत्व को जानने के लिए ,हमे इस पवित्र स्थान के दर्शन का लाभ लेना चाहिए।

श्री कृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएं


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