पिछले 20-25 सालों में भारत के लोगों की मानसिकता में गहरा बदलाव दिख रहा है जिस पर सरकार का चिंतन अति आवश्यक है क्योंकि सरकार के अरबों रुपए खर्च होने के बाद भी नतीजा सिफर।
कहने को और तुलना करने को बहुत कुछ है लेकिन हम सिर्फ शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर ही बात करें ।
सरकार के अपेक्षा रहती है कि सरकारी स्कूल में बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले जिसके चलते उच्चतम शिक्षित शिक्षक जिनका वेतन भी उच्चतम होता है, इसके साथ ही शिक्षा पुर्णतः निशुल्क ,बच्चों को मध्यान्ह भोजन, छात्रवृत्ति आदि आदि कई सुविधाएं दी जाती है, बावजूद इसके सरकारी स्कूलों का स्तर प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है, आश्चर्य तब होता है जब कलेक्टर, कमिश्नर ,डॉक्टर ,इंजीनियर, वकील यहां तक कि सरकारी स्कूल के शिक्षक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पसंद नहीं करते हैं, आखिर सरकारी नुमाइंदे जिन पर सरकार भरोसा करती है एवं करोड़ों का व्यय करती है ,अपने ही सिस्टम पर वे क्यों भरोसा नहीं करता पाते ?, और क्यों मोटी फीस देकर प्राइवेट स्कूल को प्राथमिकता देते है ,कुछ यही हाल चिकित्सा क्षेत्र का भी है, सरकार उच्चतम शिक्षित चिकित्सक ,मोटी तनख्वाह पर एवं निशुल्क इलाज आदि सुविधाएं देते हैं ताकि जनता को अच्छी प्रकार से चिकित्सा सुविधाएं मिल सकें ,लेकिन यहां भी लोगों की पहली प्राथमिकता प्राइवेट हॉस्पिटल ही होती है,ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर प्राइवेट ही क्यों और ऐसे में सरकारी अस्पतालों में अरबो रुपए खर्च करने के क्या मायने रह जाते हैं ,सरकार के लिए यह एक चिंतन का विषय है।
इस संदर्भ में हमने कुछ सरकारी नुमाइंदों से एवं आम जनता से रायशुमारी की, तो हमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य मिले, लोगों का मानना है कि सरकार को आरक्षण की नीति एवं नियमों में बदलाव करना आवश्यक है, लोगों का मानना है कि अगर कोई बच्चा गरीब है, पिछड़ा है तो सरकार उसे शिक्षित एवं योग्य बनाने के लिए उसे मुफ्त शिक्षा, पहनावा भोजन ,रहने की व्यवस्था ,स्कॉलरशिप आदि देकर उसकी सहायता करती है तब वह उचित होगा, लेकिन किसी बच्चे के 100 में से 80 एवं 100 में से 20 अंक पाने वाले बच्चे की योग्यता को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता, इसके कुछ दुष्परिणाम भी देखे जा रहे हैं , एक सरकारी स्कूल में अंग्रेजी का शिक्षक जो की बोर्ड पर जनवरी-फरवरी भी लिखने में असमर्थ है, लेकिन आरक्षण के बल पर सरकार ने उसे योग्य साबित करने की असफल कोशिश के चलते शिक्षक बना दिया, कुछ यही हाल सरकारी अस्पतालों का भी है ,यही प्रमुख कारण है कि सरकार सरकारी तंत्र पर अरबो रुपए खर्च करने के बाद भी सकारात्मक परिणाम नहीं दे पा रही है, नतीजतन लोगों की प्राथमिकता प्राइवेट सेक्टर होती जा रही है।
प्रायवेट स्कूल हो या अस्पताल जहां काम करने वाले हर कर्मचारी को अपनी 100 परसेंट योग्यता को बिना आरक्षण के सिद्ध करना होता है, यही कारण है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति हजारों खर्च करने के बाद भी संतुष्ट होता है, क्योंकि लोगों का यह मानना है कि क्वालिटी के बदले उन्हें पैसा देना मंजूर है एवं उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य के चलते किसी भी प्रकार का कोई समझौता बर्दाश्त नहीं है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार एवं राजनीतिक दल आरक्षण के माध्यम से लोगों के बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य के साथ समझौता एवं खिलवाड़ कर रहे हैं?, अरबो रुपयों का खर्च करने के बाद भी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार को सकारात्मक नतीजे नहीं मिल पा रहे हैं ,यही कारण है की मोदी सरकार ने आयुष्मान योजना के तहत सरकारी खर्च पर प्राइवेट अस्पतालों में लोगों को इलाज के लिए भेजने पर मजबूर होना पड़ा है,वहीं कमजोर वर्ग को सरकारी खर्च पर प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को प्रवेश दिलाया जा रहा है, सरकार को अब अपनी आरक्षण नीति एवम नियमों के विषय में चिंतन कर आवश्यक बदलाव करना अति आवश्यक है,अन्यथा सरकारी तंत्र पर हजारों करोड़ खर्च करने के बाद भी कोई अहमियत नही रह जायेगी।
