पेड़ की जड़ में है खराबी ,टहनियां काटना नहीं है हल

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ऐसा प्रतीत होता है मानों भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र की नस-नस में समा गया है ,सरकारी तंत्र में एक ऐसा जाल बन चुका है जहां से अगर कोई फाइल गुजरती है तो वह सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार की पटरी पर ।
उज्जैन शहर मैं होटल शांति पैलेस जो लगभग 15 साल से अधिक पूर्व एवं कुछ वर्ष पूर्व बनी शांति क्लार्क होटल, वर्षों बाद यह पाया गया कि इसका निर्माण अवैध रूप से सोसायटी की जमीन पर किया गया है जिसके चलते इंदौर हाई कोर्ट ने इसे तोड़ने का आदेश दिया ,कोर्ट के आदेशानुसार उज्जैन नगर निगम ने अवैध निर्माण को ध्वस्त किया ,नगर निगम अनुसार इस अवैध निर्माण को ध्वस्त करने की लागत लगभग 6 से 10 लाख रुपए बताई जा रही है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि होटल शांति पैलेस एवं शांति क्लार्क अवैध रूप से बनी कैसे?, क्यो अवैध निर्माण होते समय निगम आँखे मूंदकर बैठा रहा? ,जबकि शांति पैलेस एवम शांति क्लार्क के बनने में लगभग 10 साल का अंतर है ,बजाय पुराने अवैध निर्माण तोड़ने के ,होटल मालिक को एक ओर होटल बनाने की इजाज़त कैसे मिल गई ,आखिर इस अवैध निर्माण की इजाजत दी किसने, क्योंकि किसी इमारत को बनाने के लिए उसे नगर निगम के कई नियम कायदों से गुजरना होता है इसमें, भूमि ग्रीन बेल्ट या खेती की है तो उसका डायवर्शन, इंजीनियरों द्वारा नक्शा पास किया जाना ,भवन निर्माण अधिकारी कि भवन निर्माण की अनुमति, आदि आदि, इन सब पहलुओं से गुजरने के बाद ही शांति पैलेस जैसी भव्य इमारत ने मूर्त रूप लिया अर्थात नगर निगम का पूरा सिस्टम (जिसने इस इमारत को बनाने में सहमति दी )अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार है ।हाईकोर्ट ने इस अवैध निर्माण को तोड़ने के साथ साथ इसके अवैध निर्माण की जांच के भी आदेश दिए हैं, संभवतः जांच में अवैध निर्माण से जुड़े नगर निगम के कई अधिकारी इंजीनियर एवं बाबू के भ्रष्टाचार उजागर हो सकते हैं ।
बाहर हाल सवाल वही है कि क्या इस भ्रष्टाचार की एक टहनी शांति पैलेस के ढहने से समस्या का समाधान हो पायेगा? शायद नहीं ,क्योंकि भ्रष्टाचार की जड़ है सरकारी तंत्र, जब तक यहाँ भ्रष्टाचार पर लगाम नही लगेगी जहां बैठे अधिकारी कर्मचारी अपने स्वार्थ एवं लालच के चलते महज चंद सिक्कों मैं बिक जाते हैं और अपने विभाग अपने देश के साथ विश्वासघात करते हैं, तब तक इस प्रकार के अवैध निर्माण पर पर रोक लगाना संभव नही होगा ,हालात यह है कि एक मृत्यु प्रमाण पत्र भी बिना रिश्वत के नहीं मिल पाता । सरकारी तंत्र का समुद्र मंथन किया जाए तो हजारों शांति पैलेस बाहर निकल आएंगे ,ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर कोर्ट कितने शांति पैलेस को ध्वस्त कर पाएगी। आवश्यकता है सिष्टम में बदलाव की एवं जनता के जागरूक होने की भी ,क्योंकि रिश्वत देना और रिश्वत लेना दोनों अपराध की श्रेणी एक ही है ,कुछ लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को पैसों का लालच देकर अपने पद का दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं,भ्रष्टाचार की मूल शुरुआत यहीं से होती है। ऐसे में सख्त कानूनी कार्यवाही दोनों पर होना आवश्यक है ।
आवश्यकता इस बात की है भी है कि सरकारी तंत्र में बैठे लोग आत्ममंथन करें कि वह भ्रष्टाचार करते हुए अपने अन्नदाता एवं अपनी मातृभूमि से विश्वासघात कर रहे हैं जिसका प्रायश्चित भी संभव नहीं है।


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