शहर का एकमात्र बड़ा पेयजल स्त्रोत गंभीर डेम हर साल जब अपनी पूर्ण क्षमता से भर जाता है, तब प्रशासन की ओर से यह कहा जाता है कि डैम में इतना पानी है किस शहर को 2 साल तक पानी पिला सकता है ,लेकिन 2 साल तो दूर 8 से 10 महीने में डैम पूरा खाली हो जाता है, हर साल प्रशासन मई-जून में चैनल कटिंग करते हुए एक दो दिन छोड़कर जलप्रदाय ,जैसे तैसे बमुश्किल बारिश का इंतजार कर पाता है, हर साल उज्जैन की जनता तिल तिल कर पानी को तरसती है एवं हर साल प्रशासन एवं राजनीतिक दल गंभीर डेम का दौरा करते हैं और इस समस्या से निपटने के लिए तरह-तरह के उपाय सुझाते हैं ,ऐसे में सवाल ये उठता है कि 2 साल तक चलने वाला पानी आखिर 8 महीने में खत्म कैसे हो जाता है, इसके तीन प्रमुख कारण हो सकते हैं या तो गंभीर डेम उज्जैन की बढ़ती जनसंख्या के मान से छोटा पड़ने लगा है ,या गंभीर डेम से लगी जमीनों में साल भर पानी की चोरी की जाती है जिसको रोकने में प्रशासन नाकाम रहता है ,या गंभीर डेम मैं पानी के साथ कई सालों से आ रही मिट्टी के कारण गंभीर डेम मैं मिट्टी जमा होने से डैम की क्षमता में कमी आई है, लेकिन इन तीनों में से कारण जो भी हो लेकिन शासन-प्रशासन द्वारा इसके स्थाई हल करने की पहल अब तक नहीं की गई, जिसका नतीजा सर्वविदित है।
हर साल की तरह इस साल भी जिलाधीश एवं निगम आयुक्त द्वारा गंभीर डेम का निरीक्षण किया गया एवं यह कहा गया कि गंभीर डेम को गहरा करने की आवश्यकता है ऐसे में सवाल यह उठता है कि पिछले डेढ़ माह से चैनल कटिंग का काम चल रहा है तो ऐसे में गहरीकरण का काम अब तक क्यों शुरू नहीं किया गया ,अब जबकि मौसम विभाग की मानें तो पानी आने में 1 हफ्ते से भी कम समय का वक्त बचा है गहरीकरण का काम ठीक से शुरू भी नहीं हो पाएगा और बारिश आ जाएगी और गहरीकरण सिर्फ कागजों में रह जाएगा, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उज्जैन की शिप्रा नदी में पूरे साल जलकुंभी की खेती होती है ,लाखों की मशीनें एवं जलकुंभी हटाने के लाखों के ठेके देने के बाद भी जलकुंभी नहीं हट पाती एवं शिप्रा में उफान आने पर सारी जलकुंभी स्वतः ही बहकर निकल जाती है और सरकारी कागज कुछ और ही कहानी बयां करते हैं ,प्रशासन पूरे साल में छोटे से रुद्रसागर की जलकुंभी हटाने मैं भी नाकाम साबित होता है , नगर निगम की बात करें तो सफाई के नाम पर बड़ी-बड़ी डींगे हाँकी जाती है लेकिन ,इंदौर रोड की कालोनियां, नानाखेड़ा, बेगम बाग ,फ्रीगंज ,नीलगंगा, आगर रोड जैसे इलाकों के नाले एवं नालिया गंदगी से भरी पड़ी है और इस क्षेत्र की जनता चीख चीख कर कहती है की पूरे साल ना तो पार्षद और ना ही नगर निगम उनकी सुध लेने आते हैं नतीजतन बारिश के मौसम में नाले चोक होने की वजह से कालोनियों में पानी भर जाता है एवं यही गंदगी लोगों के घरों में जा पहुंचती है ।
बहरहाल, वैसे तो उज्जैन वासियों के लिए पीने के पानी के लिए नर्मदा का भी सहारा लिया जा सकता है,लेकिन उसके भी उज्जैन तक आने में 8 दिन लग जाते हैं, यूं तो कलेक्टर महोदय ,पानी के मामले में पूर्व जिलाधीश के अनुभव को देखते हुए, काफी सतर्क नजर आ रहे हैं लेकिन उज्जैन की जनता कह रही है कि “देर ना हो जाए कहीं..”, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जल है तो कल है।
उज्जैन निगमायुक्त की तेजतर्राटी की भी चर्चा शहर में इन दिनों खूब हो रही है, लेकिन शहर मैं एवं आसपास बसी कालोनियों में गंदगी के भयावह दृश्य, एवं शिप्रा नदी में मिल रहे गंदे नाले, एवं जलकुंभी की खेती रुकवाने, एवं शहर को पीने के पानी की समस्या से पूर्ण रूप से मुक्ति के उपाय ,जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालना अभी बाकी है क्योंकि यह मुद्दे उज्जैन शहर वासियों के लिए नए नहीं है, कितने ही प्रशासनिक अधिकारी आए और गए एवं कितने ही राजनेताओं ने खुली आंखों से इन समस्याओं को देखा है , लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है, और अब तो उज्जैन भावी स्मार्ट सिटी भी कहलाने लगी है तो ऐसे में यह कहा जाए कि भावी स्मार्ट सिटी की जनता को शायद और मूर्ख बनाना संभव नहीं है।
