दुनिया में 21वी सदी का आधुनिक दौर चरम पर है दुनिया के कई देश जहां प्रगति और उन्नति की ओर अग्रसर है, वहीं 70 साल की आजादी के बाद भी भारत उन्नति और विकास के पथ पर अभी काफी पीछे है ,भारत की जनता रोटी, कपड़ा और मकान के फेर में उलझी है जिस देश की रोजगार एवं उन्नत किसान प्रमुख प्राथमिकता है ,उस देश के राजनैतिक दलों ने इन प्राथमिकताओं को दरकिनार कर सत्ता पाने के लिए देश को प्रयोगशाला बना दिया ,महागठबंधन के प्रमुख सूत्रधार इंजीनियरिंग के छात्र कहलाने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, जिन्होंने दिल्ली की सत्ता पाने के लिए यूपी में सामाजिक एवं जातिगत समीकरण की जुगाड़ लगाकर बसपा प्रमुख मायावती के साथ मिलकर जनता के साथ एक प्रयोग किया, जिसे महागठबंधन का नाम दिया गया जिसे जनता ने सिरे से नकारते हुए यह सिद्ध कर दिया कि भारत की जनता अब धर्म और जातिगत राजनीति ,भारत की उन्नति और विकास में बाधक नहीं बन सकती, वहीं भारत में रह रहे हर धर्म संप्रदाय की सोच में बदलाव ,मोदी सरकार को दिए जनादेश में साफ झलक रहा है जिसमें देशहित सर्वोपरि नजर आ रहा है, अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए वोट बैंक के रूप में किसी धर्म विशेष, या जाति को मोहरा बनाना, अब राजनीतिक दलों के लिए आसान नहीं रहा, यही कारण है कि बुआ-बबुआ ,ममता एवं नायडू को ध्रुवीकरण के मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ी और महागठबंधन सिर्फ मतलब परस्त चुनावी महागठबंधन साबित हुआ ,जो की हार के साथ टूट कर बिखर गया । लेकिन ऐसे में सवाल यह उठता है कि राजनीतिक दलों के लिए भारत की जनता का भविष्य क्या महज़ प्रयोगशाला मात्र है ?,और इस प्रकार की प्रयोगशालाओं के हाथों में देश की जनता का भविष्य सुरक्षित है ?,क्या इस प्रकार के प्रयोग जनता के विश्वास एवं भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है ?
जनता ने विकास को प्राथमिकता देते हुए मोदी सरकार को स्पष्ट बहुमत दिया इसी के चलते मोदी सरकार के लिए रोजगार एवं किसानों को उन्नत बनाना जैसे मुद्दे प्रमुख प्राथमिकता एवं बड़ी चुनौती होगी।
बात जब प्रयोग की चल रही है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ऐन चुनाव के वक्त अपनी बहन प्रियंका वाड्रा को चुनावी प्रचार के लिए मैदान में लाने का प्रयोग कांग्रेस पार्टी को ज्यादा मदद दिलाने वाला साबित नहीं हो पाया बल्कि उनकी यूपी की परंपरागत सीट अमेठी हाथ से चली गई, वहीं उनका दूसरा प्रयोग केरल की वायनाड सीट से लड़ने का प्रयोग सफल रहा , राजनीतिक विश्लेषक इसका कई प्रकार से विश्लेषण कर रहे हैं।
बहरहाल लोकसभा के चुनाव में जनता ने राजनीतिक दलों को स्पष्ट संकेत दिए हैं कि भारत मैं धर्म और जाति पर आधारित राजनीति एवं इस पर आधारित प्रयोगों का अब राजनीति में कोई स्थान नहीं रहा बल्कि हर राजनीतिक दल को जमीनी स्तर पर जनता की आधारभूत आवश्यकताओं एवं विकास के लिए काम करना ही होगा ,जनता ने मोदी सरकार को पुनः स्पष्ट बहुमत देकर अपनी विकासशील योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए एक और मौका दिया है, मोदी सरकार के लिए आतंकवाद से लड़ना, कश्मीर में धारा 370, 35 ए, राम मंदिर का निर्माण, पूरे देश में बिजली, पानी की सुचारू व्यवस्था करना ,रोजगार के अवसरों को तेजी से बढ़ाना, किसानों को उन्नत बनाना एवं उनकी फसलों का वाजिब दाम का मूल्यांकन करना एवं देश को आर्थिक आधार पर मजबूती प्रदान करना जैसे मुद्दे प्राथमिक चुनौती होगी अब देखना यह है कि मोदी सरकार, जनता के विश्वास पर कितना खरा उतरती है, लेकिन इतना तो तय है की जनता अब किसी राजनीतिक प्रयोगशाला मैं नहीं जाने के मूड में है।
