सबसे पहले बात करें उस बंगाल की जहां 2019 के चुनाव के हर एक चरण में मानों अराजकता की सारी हदें पार हो गई ,अगर जनता की लाशों पर लोकतंत्र मिलता है तो उस लोकतंत्र के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है, क्या लोकतंत्र में जनता के सेवक बनने का ढोंग करने वाले नेताओं का असली चेहरा यही है ?,लोकतंत्र के इस महापर्व को बंगाल में शर्मसार होते हुए स्पष्ट देखा गया ।
अगर बात करें बद जुबानी की तो उसने भी सारी सीमाएं लांघते हुए नेताओं के भीतर का असली चेहरा जनता ने देखा, कोई नारी जाति का कलर बता रहा है, तो कोई निचले स्तर तक गिरने को तैयार है, इस प्रकार की मानसिकता से ,सत्ता में आने पर जनता के सेवक बनने की उम्मीद की जा सकती है ?
जाति और धर्म के आधार पर भी जनता को भ्रमित किया जा रहा है जो कल तक श्री राम और श्री कृष्ण की बात कर रहे थे ,पाला बदलने पर उनकी मानसिकता में गजब का परिवर्तन दिख रहा है, अब वह अल्लाह हू अकबर कहते नहीं थक रहे ,कुल मिलाकर जनता को धर्म और जाति के नाम पर भ्रमित कर मूर्ख बनाने की कोशिश की जा रही है ,ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजनेताओं के पास मुद्दे नहीं है, कोई विजन नहीं है, सब राजा बनने की कोशिश में फ़कीर बनना कोई चाहता नहीं, जिनको 4 सीटें मिलने की उम्मीद नहीं है वह भी प्रधानमंत्री की दौड़ में दिख रहा है ,प्रधानमंत्री का पद एक है वहीं देश में 30 से अधिक दल है जो इस पर अपना दावा ठोक रहे हैं, यह सब देखकर जनता भी अचंभित है ।
क्या पाया और क्या खोया, तो आजादी के 70 साल के बाद आज भारत अपने अंदर झांकता है तो उसे अपने अंदर सैकड़ों सिक्खों एवं कश्मीरी पंडितों के खून से सने हाथ दिखाई देंगे ,जलियांवाला बाग के नरसंहार का दोषी हमने अंग्रेजों को ठहराया, लेकिन जो बाद में हुआ इसका दोषी आखिर कौन ? अभी भी हमारे किसान उन्नत नहीं बन पाए, कर्ज़ लो और माफ कराओ ,अभी भी हमारे देश का नौजवान बेरोजगार है ,जनता गरीब है ,और आगे भी हमारे राजनेता उन्हें निकम्मा ,नाकारा और बेईमान बनाने पर अग्रेषित हैं ,क्या दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र जनता के साथ न्याय कर पाया ?,इन सभी विषयों पर जनता को चिंतन करना आवश्यक है, इन सब बातों का निष्कर्ष यह है कि जनता को जागरूक होना होगा, राजनेताओं की जनता को धर्म और जाति के आधार पर बांटने की मंशा को नाकाम करना होगा ,जनता रोजगार चाहती है ,उनके बच्चों का उज्जवल भविष्य चाहती है, किसानों को चाहिए उनकी मेहनत की कमाई का वाजिब दाम ,ना की मुफ्त की रेवड़ी ।
जनता को समझना होगा कि उनकी गाड़ी कमाई से ही यह लोकतंत्र का त्यौहार (चुनाव) हो रहा है, इसलिए एक मजबूत सरकार चुनने की आवश्यकता ,जो कि 5 साल चले अन्यथा 40 हज़ार करोड़ से अधिक के भारी भरकम खर्च को फिर से वहन भी जनता को ही करना होगा ,फैसला आपके हाथ में है।
वोट जरूर करें एवं अपनी सरकार खुद चुने क्योंकि वोट ना देने पर ,परिणाम पर आप प्रश्नचिन्ह नहीं लगा पाएंगे।
