अगर बात राज्य की हो तो अपने राज्य के हिसाब से अलग-अलग मुद्दे एवं राजनैतिक दल हो सकते हैं और किसी हद तक इसे जनता ठीक भी मानती है, राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह एक विधानसभा एवं मुख्यमंत्री को चुनने भर के लिए सीमित होना जनता के लिए हितकर साबित हो सकता है ,लेकिन जब बात लोकसभा या प्रधानमंत्री चुनने की हो तो देश में अनेक क्षेत्रीय दल जब अलग अलग, लोकसभा चुनाव में भाग लेते हैं तो जनता के लिए यह न सिर्फ भ्रामक स्थिति होती है ,बल्कि जनता के लिए असमंजस की स्थिति को भी जन्म देती है, कैसे ?
क्षेत्रीय दलों का अपने-अपने क्षेत्रों में या राज्यों में अपना वर्चस्व हो सकता है और जनता अपने क्षेत्रीय दलों का समर्थन कर अपने मुख्यमंत्री को चुनती है, यहां तक तो ठीक है लेकिन जब यही क्षेत्रीय दल लोकसभा चुनाव में भाग लेते हैं, तो बात प्रधानमंत्री चुनने की होती है जो कि पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है, क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व अपने अपने क्षेत्र तक ही सीमित होता है, पूरे देश में नहीं, अर्थात किसी क्षेत्रीय पार्टी को पूरे देश से समर्थन मिले एवं वह 273 के बहुमत के आंकड़े को प्राप्त करें शायद यह संभव नहीं होता, ऐसी स्थिति में असमान विचारधारा वाले अनेक क्षेत्रीय दल मिलकर सरकार बनाते हैं ,लेकिन इसमें पूरे देश की जनता की पसंद का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता, क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने क्षेत्र के मुद्दे होते हैं इसी कारण जब विपरीत विचारधारा वाले दल मिलकर सरकार बनाते हैं तब पूरे देश के लिए हितकर निर्णयों में आम सहमति नहीं बन पाती और सरकार अल्प समय में ही गिर जाती, नतीजा देश की जनता पर चुनाव का अतिरिक्त भार पड़ने का अंदेशा होता है, देश की नीतियों एवं राज्य की सरकार की नीतियों मैं बहुत ज्यादा अंतर होता है। 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो सिर्फ एनडीए ने ही प्रधानमंत्री पद के रूप में उम्मीदवार अधिकारिक रूप से घोषित किया है, बाकी पूरे देश में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों ने अपनी अपनी पार्टी के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की अधिकारिक घोषणा नहीं की है, अर्थात स्पष्ट है कि चुनाव परिणामों के हिसाब से निर्णय हो सकता है।
बहरहाल देश में लोकसभा चुनाव का महापर्व चल रहा है, और जनता को न सिर्फ अपने प्रतिनिधि के रूप में सांसद को चुनना है बल्कि देश के प्रधानमंत्री को चुनने का भी यही आधार होगा ।
“मन से सारे संशय दूर करें ,देशहित में वोट जरूर करें”
