अमूमन जनता अपने बहुमूल्य वोट की कीमत समझ नहीं पाती ,हमें राजनीति से क्या लेना देना, हमारे एक वोट से क्या बदल जाएगा ,लेकिन ऐसी अवधारणाओं को आज बदलने की आवश्यकता है ,जनता को यह समझना होगा कि जिस देश में वह जीवन यापन कर रहे हैं ,वहां लोकतंत्र है अर्थात जनता खुद अपने प्रतिनिधियों को चुनौती है जो कि न सिर्फ उनकी समस्याओं का निराकरण करते हैं बल्कि जनता के उज्जवल भविष्य के लिए योजनाओं को मूर्त रूप भी देते हैं ,लोकतंत्र अर्थात जनता के लिए जनता द्वारा चुनी हुई, देश एवं राज्य को चलाने वाली व्यवस्था होती है ,बहुत से नए युवा वोटर हैं जो अभी पहली बार वोट करेंगे और उनमें उत्साह भी दिखाई दे रहा है लेकिन इस उत्साह के साथ उन्हें यह भी समझना होगा की किस राह पर राष्ट्र प्रगतिशील हो सकता है ।
विधानसभा के चुनाव जोकि राज्य स्तरीय होते हैं, देश में अनेक राज्य हैं जलवायु ,धर्म, जाति बाहुल्यता के हिसाब से हर राज्य के अपने स्थानीय मुद्दे होते हैं एवं इन्हीं मुद्दों को लेकर राज्य में अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक दल हर राज्य में होते हैं, यहां भी जनता अपने प्रतिनिधि के रूप में विधायक को चुनती है और यही विधायक अपने नेता को चुनते हैं जो कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कहलाता है।
वहीं लोकसभा की बात करें तो यहां भी जनता अपने प्रतिनिधि के रूप में सांसद को चुनती है, और यही सांसद मिलकर अपने नेता का चुनाव करते हैं जिन्हें देश का प्रधानमंत्री कहा जाता है ,लोकसभा में पूरे देश से सांसद चुनकर आते हैं जो अपने अपने राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं ,लोकसभा ,जहाँ राष्ट्रव्यापी योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाता है।
2019 का लोकसभा चुनाव का आगाज़ हो चुका है, यहाँ जनता को यह समझना आवश्यक है कि लोकसभा अर्थात हम पूरे देश की बात कर रहे हैं, इसी के चलते जनता को बिना किसी निजी स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष, जाति, धर्म से जुड़े मुद्दों से ऊपर उठकर देश हित को सर्वोपरि मानते हुए वोट करना चाहिए, जनता को एक मजबूत सरकार बनाना चाहिए जो कि देश को अगले 5 वर्षों में प्रगति उन्नति के नए आयाम दे सके ,यह तभी संभव है जब सरकार 5 साल तक कार्य करें ऐसा कहने की आवश्यकता इसलिए भी है ,क्योंकि चुनावी व्यवस्था बहुत खर्चीली होती है ,2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 35 हजार करोड़ चुनावी खर्च हुआ था ,तो इससे हम समझे कि इतने भारी भरकम खर्च के बाद जनता देश को ऐसी सरकार दे ,जो 5 साल चले अन्यथा बीच में सरकार गिरने पर पुनः जनता पर इतनी ही राशि का भार पड़ने की संभावना उत्पन्न हो जाती है, ओर यह चुनावी पैसा भी जनता का ही होता है।
भारत में अल्पकालीन सरकार के इतिहास को हम देखें तो गुलजारी लाल नंदा, लाल बहादुर शास्त्री ,मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह ,चंद्रशेखर, इंद्र कुमार गुजराल, एच डी देवगौड़ा ,अटल बिहारी वाजपेयी यह वे प्रधानमंत्री रहे जिनकी प्रधानमंत्री के रूप में अल्पकालीन सरकार रही, वहीं पूर्णकालिक सरकार के इतिहास को देखें तो जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी ,नरसिंह राव ,अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह एवं नरेंद्र मोदी ,जिनकी प्रधानमंत्री के रूप में पूर्णकालिक सरकार रही ,इससे स्पष्ट होता है की जनता ने जब भी किसी राजनीतिक दल पर पूर्ण भरोसा करते हुए स्पष्ट बहुमत दिया है उस सरकार ने सफलतापूर्वक 5 साल पूर्ण किए। अल्पकालीन सरकार से देश की आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर पड़ता है एवं देश की प्रगति में भी बाधा उत्पन्न होती है, वहीं विश्व के पटल पर देश की छवि पर भी इसका असर होता है, विश्व के देश एक दूसरे से व्यापारिक रूप सेभी जुड़े होते हैं ,अल्प समय की सरकार से भविष्य की योजनाओं पर भी असर पड़ता है, जो कि देश हित में नहीं होता है ।
बहरहाल देश में कई राजनीतिक दल 2019 के लोकसभा के चुनावी मैदान में है एवं अपने अपने स्तर पर सब जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लोकलुभावन वादे भी कर रहे हैं, लेकिन जनता को राष्ट्रहित को मद्देनजर रखते हुए ,अपना प्रतिनिधि चुनना चाहिये, ताकि देश को 5 साल चलाने वाली मजबूर सरकार मिले एवं देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़े।
“मतदाता उठो, जागो और मजबूत सरकार बनाने के लिए बोट जरूर करो”,वोट करना जनता का कर्तव्य भी है।
