उज्जैन जिले में फरवरी 19 से मार्च 19 तक सभी प्राइवेट स्कूलों के परीक्षा संपन्न हुई ,वहीं कुछ स्कूलों में 15 मार्च से तो लगभग सभी प्राइवेट स्कूलों में नया सत्र 1 अप्रैल से शुरू हो चुका है, इस सत्र की शुरुआत के लिए लगभग सभी बच्चों के पालकों द्वारा नई किताबें तय जगह से खरीदी जा चुकी है ,ये वही किताबें हैं जो कहने को सीबीएसई एवं आईसीएसई बोर्ड की है लेकिन एक जैसा बोर्ड होने के बाद भी हरेक स्कूल में पब्लिशर एवं स्कूल प्रशासन के हिसाब से, बुक्स अलग अलग है जो कि एक तयशुदा जगह एवं तयशुदा कीमत मैं पालक खरीदने को बाध्य है, और इस नए सत्र में एक बच्चे का कोर्स मिनिमम 3000 से लेकर ₹9000 तक पालकों द्वारा खरीदा गया है।
प्रशासन की बात करें तो अप्रैल माह में प्रशासन क्रियाशील हर साल की तरह दिख रहा है ,शिक्षा विभाग पूरे साल स्कूलों में झांककर देखता तक नहीं है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाता है और जो बुक्स में सिलेबस है वह बच्चों को वास्तविकता में पढ़ाने लायक है भी कि नहीं, हर साल बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के लिए एनसीईआरटी की बुक्स प्राइवेट स्कूलों में लागू करने की बात कही जाती है और हर साल फिर वही ढाक के तीन पात ,प्रशासन अब क्रियाशील दिख रहा है और दिखावे की कार्रवाई कर रहा है ,जब पालकों की जेब से हजारों रुपयों की किताबों के मान से अनेक प्राइवेट स्कूलों में हजारों बच्चों की करोड़ों रुपयों की किताबों का व्यापार होकर पालकों की जेब कट चुकी है ,अब इस कार्रवाई के क्या मायने हैं? स्कूल प्रशासन बुक्स अगर कम कर भी देता है तो वह कम की गई किताबें जो कि पालकों द्वारा खरीदी जा चुकी है, क्या स्कूल प्रशासन या दुकानदार या प्रशासन कौन उनके पैसे वापस कराएगा और अगर नहीं कराएगा, तो ऐसी कार्रवाई के क्या मायने जिसमें पालकों का करोड़ों का नुकसान किया गया हो।
सवाल यह भी उठता है कि पालकों के करोड़ों रुपयों के नुकसान का जिम्मेदार आखिर कौन ?, क्या मुख्य मंत्री महोदय एवं शिक्षा मंत्री इस विषय पर प्रकाश डालेंगे ?दरअसल इस विषय पर शिक्षा विभाग और शासन, प्रशासन की पहले से किसी प्रकार की कोई तैयारी हर साल की तरह नहीं दिख रही थी, अभी अगर एनसीईआरटी की किताबें अगर वास्तविक में लागू कराई भी जाये तो मध्यप्रदेश शासन की पोल खुल जाएगी क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में शासन के पास एनसीईआरटी की बुक्स उपलब्ध कराने के लिए है ही नहीं ।
बहरहाल, बड़ी संख्या में पालकों का यह मानना है कि इस प्रकार की प्रशासन की कार्रवाई करने में ,और नहीं करने में, दोनों तरफ ,सिर्फ और सिर्फ पालकों का ही नुकसान है, और इसके लिए प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश शासन एवं प्रशासन की ही जिम्मेदार है।
