मध्यप्रदेश में दोस्त ,यूपी में दुश्मन ,कैसे ?

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2018 के विधानसभा चुनाव को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है , इसमें पांच राज्यों, जिसमें से तीन प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,राजस्थान की बात करें तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने बिना किसी के सहयोग के सरकार बनाई, लेकिन अगर हम मध्य प्रदेश को देखें तो 114 सीटों के साथ कांग्रेस बहुमत से दूर थी ,तब बीएसपी के दो, समाजवादी पार्टी का एक एवं अन्य चार विधायकों के सहयोग से कमलनाथ ने कमल को खिलने से रोका।
लोकसभा 2019 का चुनावी बिगुल बज चुका है एवं पूरे देश से सांसद चुने जाएंगे जो कि देश को अगला प्रधानमंत्री देंगे ,सत्ता पक्ष की बात कहे,तो एन डी ए, मौजूदा प्रधानमंत्री की अगुवाई में चुनवी मैदान में है, वहीं यूपीए के अलावा भी कई अलग अलग क्षेत्रीय दल भी चुनावी मैदान में है, जिन का प्रधानमंत्री का चेहरा अभी घोषित नहीं है।
सबसे ज्यादा 80 सीट लिए उत्तर प्रदेश में मुकाबला दिलचस्प दिखाई दे रहा है ,जो दल मध्य प्रदेश में मित्रता दिखा रहे हैं , वही दल यूपी में एक दूसरे के सामने खड़े हैं, सपा एवं बसपा जो कल तक एक दूसरे के विरोधी दल कहे जाते थे आज वह एक साथ चुनावी मैदान में है , यहां देखने वाली बात यह है कि जिस कांग्रेस को मध्य प्रदेश में समर्थन देकर सरकार बनाई जाती है, वही कांग्रेस, यूपी में सपा, बसपा को फूटी आंख नहीं सुहा रही है, जहां कांग्रेस ने एसपी ,बीएसपी के लिए यूपी में 7 सीटें छोड़ने की मंशा जाहिर की ,जिसके चलते बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस को ललकारते हुए कहा की यूपी में वह अपने दम पर चुनाव लड़ना जानती है एवं उसे किसी की मदद की आवश्यकता नहीं है।
वास्तव में देखा जाए तो यह वर्चस्व की लड़ाई है, समाजवादी पार्टी एवं बीएसपी क्षेत्रीय दल है, 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखें तो समाजवादी पार्टी 5 एवं बीएसपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी, वहीं राष्ट्रीय दल कांग्रेस 80 सीटों में से महज 2 सीट पर ही संतोष करना पड़ा था, क्षेत्रीय दलों को अपना वर्चस्व बचाने के लिए राष्ट्रीय दल कांग्रेस का अपने क्षेत्र में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं ,तो वहीं राष्ट्रीय दल कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी होने का स्तर भी बरकरार रखने का दबाव है ,बीजेपी से यूपी छिनने के लिए कांग्रेस भी पूरा जोर लगा रही है , इस बार विशेषकर यूपी में कांग्रेस के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी प्रियंका वाड्रा को सौंपी गई है ।
बाहर हाल यह लोकसभा 2019 का चुनाव है ,जहाँ किसी की साख़ दाव पर लगी है ,तो किसी का अस्तित्त्व,लगभग सभी राजनैतिक दल किसान एवम गरीब को रिझाने की कोशिश में है, कौन अपने लाभ -हानि के लिए कब ,कहां, कैसे पलटी मारेगा एवं दोस्त और दुश्मन होगा, कहना जल्दबाजी होगी ,लेकीन सभी दल एक दूसरे के क्षेत्र में सेंध लगाकर वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते दिख रहे है, सबकुछ जनता के हाथ में है ,अगला प्रधानमंत्री ,भाजपा ,कांग्रेस या फिर क्षेत्रीय दलों का होगा, इसका फैसला तो आगामी 23 मई को ही होगा।


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