26 /11 के मुंबई आतंकी हमले में 166 लोगों की दर्दनाक हत्या का वो दिन, भारत का हर देशवासी कभी नहीं भूल सकता, इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने ली एवं उसका सरगना हाफिज सईद आज भी पाकिस्तान से भारत को आंखे दिखाने की हिमाकत कर रहा है, भारत की जनता आज , तत्कालीन सरकार पर सवाल उठा रही है कि क्या 2008 से 2014 तक 6 साल के लंबे अंतराल के दौरान एयर स्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक भारत की ओर से क्यों नहीं की गई ,क्या सरकार सक्षम नहीं थी या सेना ?, 1965 ,1971 एवं 1999 कै सेना के विजयी शौर्य ने सेना के सक्षम ना होने पर पूर्ण विराम लगा दिया, ऐसे में सवाल यह उठता है कि 26 /11 मुंबई आतंकी हमला करने वाले आतंकी संगठन एवं पनाहगार पाकिस्तान पर सेना को बड़ी कार्रवाई करने से किसने रोका, क्यों 26/ 11 का इंतकाम तत्कालीन सरकार द्वारा नहीं लिया गया ?
हो सकता है कि उस समय सेना कोई एयर स्ट्राइक करती एवम तत्कालीन विपक्ष या किसी सिद्धू को कहने का मौका मिलता कि शायद पेड़ पौधे गिरे होंगे।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के यही मायने हैं एवं लोकतंत्र में राजनैतिक दलों की ऐसे मुश्किल हालातों में देश के प्रति, सेना के प्रति क्या यह जिम्मेदारी बनती है और क्या वोटों की राजनीति या सत्ता पाने की होड़ मैं देश की साख को दांव पर लगाया जा सकता है?
चुनावी दौर 26/ 11 के बाद भी था और 14/ 2 के बाद भी है, लेकिन सस्ती लोकप्रियता पाने वाले नेता, बिना चुनावी दौर वाली सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सवाल उठाते थे और आज भी ।
देश की जनता आज राजनेताओं से यह सवाल कर रही है कि क्या देश में मुश्किलों के दौर मैं अपने राजनीतिक हितों को परे रखकर, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एकता नहीं दिखा सकते? क्योंकी विश्व के पटल पर एकता और अखंडता उसी देश की मजबूत मानी जाती है, जिस देश के नेताओं ने लादेन के मारने का सबूत आज तक उस देश से नहीं मांगा।
