क्या ,सेना के साहसिक कारनामों पर प्रश्नचिंह लगाना उचित है ?

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उरी में आर्मी कैंप पर आतंकी हमले के बाद सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की जिसमें पाकिस्तान के आतंकी कैंपों को ध्वस्त किया और उनके 30 से ज्यादा आतंकीयों को मौत के घाट उतार कर सकुशल हमारे भारतीय सेना के जांबाज़ सिपाही स्वदेश लौटे, इस साहसिक कारनामे की जानकारी सेना की ओर से दी गई ,उस समय देश के विपक्ष और कई गैर जिम्मेदार राजनेताओं द्वारा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते इस पर कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए सबूत देने की मांग की गई।
कुछ ऐसा ही पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत की जांबाज़ वायुसेना द्वारा पाकिस्तान मैं बालाकोट , मुजफ्फराबाद चकोठी मे स्थित आतंकी संगठन जैश के कई ठिकानों को ध्वस्त किया जिसमें जैश के कई बड़े कमांडरों के मारे जाने की खबर आई ,इसमें गौर करने वाली बात यह है कि भारत की जनता को अपने जांबाज सिपाहियों के साहसिक कारनामों की जानकारी बाद में मिली ,पहले नसिर्फ पाकिस्तान की मीडिया एवम पाकिस्तान के कई शहरों में इसकी चर्चा चली बल्कि पाकिस्तान के कई शहरों में इस हमले के कारण अफरा तफरी मची हुई थी , जिसके बाद भारत की ओर से विदेश मंत्रालय द्वारा इसकी आधिकारिक जानकारी दी गई ,ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत के राजनैतिक दल एवं गैरजिम्मेदार नेता वोटों की राजनीति में इतने स्वार्थी हो गए हैं कि वह भारत की सेना के साहसिक कारनामों पर भी सवालिया निशान लगा रहे हैं ,दरअसल मोदी के खिलाफ उनका जुनून इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि उन्हें यह भी आभास नहीं है कि वह यह सवालिया निशान मोदी पर नहीं बल्कि भारत के जांबाज सिपाहियों और उनके द्वारा आतंक के खिलाफ साहसिक कारनामों पर लगा रहे हैं, सेना पर अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए उनके साहसिक पराक्रम पर प्रश्नचिन्ह लगाना न सिर्फ उन शहीदों की शहादत का अपमान है बल्कि देश की साख पर बट्टा लगाने की भी कोशिश है, जिसे कतई भी उचित नहीं ठहराया जा सकता ,जिसपर उन्हें आत्ममंथन की आवश्यकता है एवं देश की सुरक्षा पर अपने स्वार्थ का चश्मा उतारने की भी आवश्यकता है।

पुराणों में कहावत है, जो आज के राजनैतिक परिदृश्य में सटीक बैठती है

“जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”।


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