2019 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, सभी राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर रणनीति एवं गठबंधन बना रहे हैं और इसी कड़ी में तैयार हो रहा है, महागठबंधन ,जिसको हम तीसरा मोर्चा भी कह सकते हैं क्योंकि हालिया विपक्ष कांग्रेस पार्टी अभी इसमें शामिल नहीं है।
अब हम यह समझते हैं कि कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल होने और ना होने के क्या लाभ हानि हो सकते हैं, अगर कांग्रेस इस महागठबंधन में शामिल होती है ,तो क्षेत्रीय दलों को अपने ही राज्यों में नुकसान होगा ,उदाहरण के लिए 2014 में लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा और बसपा को खासा नुकसान उठाना पड़ा, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस, यूपी ,बिहार ,पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा ,आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु,कर्नाटक, महाराष्ट्र, जम्मू एंड कश्मीर, तेलंगाना जैसे राज्यों में किसी क्षेत्रीय दल के साथ गठबंधन नहीं करती है ,तो क्षेत्रीय दलों के कारण कांग्रेस को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है, इसी के चलते कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को 2019 के चुनाव मैदान में उतारने का दांव खेला और कहीं ना कहीं प्रियंका अपनी मां की जगह भी लेती दिख रही है ,इससे 2019 में कांग्रेस को राजनीतिक लाभ हानि कितना होगा कहना जल्दबाजी होगी।
दूसरी ओर भारत का इतिहास तीसरे मोर्चे की सरकार के सफल ना होने का है ,महागठबंधन मिलकर किसी को प्रधानमंत्री चुनकर सरकार बनाती है और कांग्रेसी बाहर से समर्थन करती है ,तो सरकार के 5 साल चलने मैं संदेह नजर आता है, क्योंकि मोरारजी देसाई ,चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर ,एच डी देवगौड़ा ,इंद्र कुमार गुजराल जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं, वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सभी दल मिलकर अगर कांग्रेस को सपोर्ट करते हैं,तो प्रधानमंत्री के रूप में राहुल ना होकर, प्रियंका सबकी पहली पसंद होगी, अर्थात 2019 राहुल vs मोदी मैं संदेह उत्पन्न होता है।
वहीं राजस्थान ,छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश ,कर्नाटक मैं करारी हार के बाद ,मोदी एवं एन डी ए की राह भी आसान नजर नहीं आ रही ।
वर्तमान परिदृश्य से स्पष्ट होता है,की क्षेत्रीय दलों का उभर कर आना राष्ट्रीय दलों के लिए नुकसान दाई हो सकता है, वहीं राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व ,क्षेत्रीय दलों को समाप्त कर सकता है।
बहरहाल राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार 5 साल सफलतम तब ही चल पाएगी, जब किसी राष्ट्रीय पार्टी को स्पष्ट बहुमत 2019 मैं मिलेगा।
