व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता

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अगर हम लोकतंत्र के रास्ते देश के उज्जवल भविष्य की कल्पना करते हैं ,और हम यह चाहते हैं कि देश विकास के पथ पर आगे बढ़े ,तो उसके लिए लोकतंत्र को भी अपने अंदर झांकने की आवश्यकता है, इसमें बदलाव की आवश्यकता आज इसलिए भी महसूस हो रही है क्योंकि हम 21वीं सदी के आधुनिक दौर से गुजर रहे हैं और भारत का लोकतंत्र दुनियां में सबसे बड़े लोकतंत्रों में विद्यमान है लेकिन इस लोकतंत्र का सिर शर्म से तब झुक जाता है, जब हम लोकतंत्र मैं उच्च पद (विधायक ,सांसद ,मंत्री ,मुख्यमंत्री) पर ऐसे व्यक्तियों को पाते हैं जो अपने भाषण का वाचन भी ठीक से नहीं कर पाते, वहीं आईएएस, आईपीएस जैसे उच्च शिक्षित उन्हें न सिर्फ सैल्यूट करने को मजबूर है बल्कि उनके हाथों की कठपुतली बनने को भी मजबूर हैं।
एक तरफ जहां हम एक चपरासी की नौकरी पाने के लिए उच्च शिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता महसूस करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपने शहर ,अपने राज्य ,अपने देश की बागडोर अनपढ़ ,आपराधिक एवं अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में सौंपने पर जरा भी संकोच नहीं करते ,आम जनता के लिए यह विषय घोर चिंतनीय है।
राजनैतिक दलों दलों की बात करें तो नोटों की गड्डीयों के नीचे काबिलियत दम तोड़ती नजर आती है, वहीं अयोग्य व्यक्ति धन और बल के दम पर उच्च पद पर काबिज हो जाता है ,बुद्धिजीवियों का मानना है की जनता “धर्म, जाति, एवं परिवार” को प्राथमिकता देते हुए अयोग्य व्यक्ति की अयोग्यता को दरकिनार कर अपने भविष्य के साथ समझौता कर बैठते हैं और देश को ऐसे व्यक्तियों को सौंप देते हैं, जिनको अपना नाम भी ठीक से लिखना नहीं आता, और हम यह भी चाहते हैं कि हमारा देश विकास के पथ पर आगे बढ़े, इसलिए जनता का आत्ममंथन आज के दौर में बहुत आवश्यक है।
वहीं आवश्यकता इस बात की भी है की राजनैतिक पार्टियां एवं सरकार मिलकर संविधान में संशोधन कर लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वालों की योग्यता की नीति का निर्धारण कर आवश्यक बदलाव करें अन्यथा अल्प शिक्षित ,आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अगर लोकतंत्र में उच्च स्थान पर काबिज होते रहे तो देश को अंधकार की गहराइयों में जाने से कोई नहीं रोक पाएगा।


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