2019 की शुरुआत एक सबक लेकर आई है,जिसने 2018 में बनी मध्य प्रदेश सरकार को 2019 में कांग्रेस को अंगूर खट्टे कहने पर मजबूर कर दिया ,कमलनाथ सरकार मायावती की बैसाखी पर खड़ी जरूर हो गई लेकिन अब मायावती का मायाजाल रंग दिखाने लगा है और यह रंग विक्रम और बेताल जैसा प्रतीत हो रहा है ।
मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट के एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के फैसले के बाद ,पूरे देश में जो अराजकता फैली थी जिसमें करोड़ों रूप की शासकीय एवं गैर शासकीय संपत्ति जलकर स्वाहा हो गई थी, कई लोगों ने अपनी जान गवाई थी और इसी के चलते सैकड़ों लोगों पर आपराधिक केस दर्ज किए गए थे ,लेकिन मध्यप्रदेश में सरकार बनने के महज कुछ दिनों बाद ही बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, जिसके सहयोग से कांग्रेस की सरकार मध्यप्रदेश में सत्ता में आई, ने मुख्य मंत्री कमलनाथ को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया ,जिसके तहत उन्होंने मांग रखी की अप्रैल 2018 मैं दलित समाज के लोगों पर जो केस दर्ज हुए थे उन्हें मध्य प्रदेश सरकार वापस ले अन्यथा कांग्रेस को दिया हुआ समर्थन वापस ले लिया जाएगा और मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने इसे मानते हुए सारे केस वापस लेने की घोषणा की, बात यहीं रुक जाती तो ठीक थी , मग़र मध्यप्रदेश में सवर्णों की हितेषी कही जाने वाली सपाक्स पार्टी मुख्य मंत्री कमलनाथ से मिलकर यह मांग रखेगी की जाति के आधार पर भेदभाव ना करते हुए स्वर्णो पर से भी एट्रोसिटी एक्ट के तहत जो मामले दर्ज हैं उन्हें भी वापस लिया जाए अन्यथा इस मांग को लेकर आंदोलन किया जाएगा ऐसे में सवाल ये उठता है कि विक्रम और बेताल के समान ,अर्थात कांग्रेस अगर मायावती की मांग को स्वीकार नहीं करती तो सरकार गिरने का डर सताता और मान लेने पर स्वर्णो के क्रोध का भाजक बनने का डर भी सता रहा है ,क्योंकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में सवर्णों के क्रोध का भाजक भाजपा बनी थी जिसके चलते शिवराज सरकार को विपक्ष का नाम मिला ,अब देखना यह होगा कि मध्य प्रदेश सरकार सवर्णों पर से केस वापस लेती है या नहीं और नहीं लेने पर सवर्णों की हिमायती कही जाने वाली सपाक्स पार्टी का अगला कदम क्या होगा ।
लेकिन इस बात से यह सिद्ध होता है कि वोट बैंक की राजनीति और अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही अब राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य बन चुका है ,और सरकार के तराजू में एक और विकास तो दूसरी और स्वार्थ है , ओर कहीं ना कहीं स्वार्थ का पलड़ा भारी नज़र आता है ।
बाहर हाल 2019 आ चुका है और लोकसभा के चुनाव नजदीक हैं ऐसे में जनता इस विक्रम और बेताल के खेल को भली-भांति देख भी रहे और समझ भी रही है।
