शिक्षा का बदलता चरित्र

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90 परसेंट लाने का दबाव, माता पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव, अपने मित्रों सहपाठियों से ज्यादा नंबर लाने का दबाव और फिर आरक्षण से हारने की टीस, यह सब ना पाने पर जिंदगी को अलविदा कहने का आखरी फैसला, हमारी युवा पीढ़ी को हम ये क्या करने पर मजबूर कर रहे हैं?
हमारी अपेक्षाएं ,हमारे द्वारा उत्पन्न की गई प्रतिस्पर्धा और हमारी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते बनाई गई कुरीतियां, हमारी युवा पीडी के मस्तिष्क मैं एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष एवं हीनता की भावना पैदा कर रही है और इसके चलते हम अपने बच्चों को उनके भविष्य की दिशा से भटकाते हुए उन्हें अंधकार की गर्त में धकेल रहे हैं।
शिक्षा के बदलते चरित्र, जिसमें पश्चिमी सभ्यता का रंग चढ़ता जा रहा है ,इसने लोगों की मानसिकता को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई है, हमारा बच्चा अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है ,अब इसमें अच्छे की परिभाषा क्या है, खुद हमें भी मालूम नहीं है ,क्या अच्छे का मतलब महंगा है, स्कूल की बिल्डिंग बड़ी है, बस लेने छोड़ने आती है या शिक्षा ,अच्छी या बुरी ?, लेकिन जिस अच्छे के नाम पर हम ठगे जा रहे हैं उसे समझना आवश्यक है, प्राइवेट स्कूलों में भी सरकार द्वारा तय किए हुए मानक कोर्स ही पढ़ाया जाता है, वहीं सरकारी स्कूलों में भी उसी आधार पर शिक्षा दी जाती है बल्कि उच्चतम शिक्षित शिक्षकों द्वारा , ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्राइवेट ही क्यों , सरकारी क्यों नहीं ,तो यहां फर्क सिर्फ मानसिकता का है या वाकई में सरकार को इस विषय पर चिंतन करने की आवश्यकता है।
हालात यह है कि ₹10000 प्रति माह कमाने वाला ₹5000 प्रति माह के खर्च पर अपने बच्चे को पढ़ा रहा है, क्यों, सिर्फ दिखावे के चलते और इसके चलते विशेषकर हिंदू समाज में संतान उत्पत्ति पर स्वतः ही रोक लगती जा रही है क्योंकि एक संतान को पढ़ाने का खर्च ही लाखों में है ,तो दूसरे की बात करना भी बेमानी है।
लाखों की फीस देने के बाद बची खुची जेब, कोचिंग में खाली हो जाती है और कोचिंग में भी पढ़ाई कम कॉम्पिटिशन ज्यादा सिखाया जाता है, जिससे कि बच्चों में एक दूसरे के प्रति हीन भावना घर कर जाती है और इस कॉम्पिटिशन के चलते बच्चे मानसिक विकलांगता की ओर अग्रसर हो जाते हैं और कई बार यह जिंदगी का अंत का कारण भी बन जाती है।
वोटों की राजनीति और अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते आरक्षण जैसी कुरीतियां जोर पकड़ रही है ,जिसके चलते ,कोई महज 20 नंबर पाकर डॉक्टर ,इंजीनियर बन रहा है तो कोई 80 नंबर पाकर भी सड़कों की खाक छानने को मजबूर है।
इसे हम शिक्षा का बदलता चरित्र कहेंगे या हमारा ?,
चिंतन करना बहुत आवश्यक है, चाहे वह सरकार हो, राजनैतिक दल हो ,शिक्षाविद हो या पालक,
क्योंकि यह एक ऐसा विषय है जिससे देश के भविष्य की दिशा निर्धारित होती है।


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