पांच राज्यों में चुनाव के नतीजों ने तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार को चुना, राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे प्रमुख कारण किसान की कर्ज माफी के मुद्दे को मानते हैं, कांग्रेस के घोषणापत्र में भी किसानों के दो लाख तक के क़र्ज़ माफ़ी का उल्लेख है एवं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा चुनावी सभाओं में घोषणा या इसका वायदा किया गया, इस घोषणा के चलते किसानों ने कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया और इस मुद्दे पर कांग्रेस ,छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश ,राजस्थान में सत्ता में लौट आए ,लेकिन जीत के तुरंत बाद राहुल गांधी द्वारा कहा गया कि किसानों की समस्या का स्थाई हल क़र्ज़ माफ़ी नहीं हो सकता, इस बात से स्पष्ट है कि राजनीतिक दल इस समस्या का या तो हल जानते नहीं हैं, और अगर जानते हैं तो उसका हल करना चाहते नहीं ,ऐसा इसलिए क्योंकि इस चुनाव में विकास की बात ना कांग्रेस पार्टी ने की ना ही भाजपा ने ,शिवराज सरकार ने अपने 15 साल के शासनकाल मैं किए गए कार्यों का बखान करने के बजाय ,आरक्षण एवं एट्रोसिटी एक्ट को प्राथमिकता देना ज्यादा उचित समझा।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत कृषि प्रधान देश है और भारत की हर राजनीतिक पार्टी सत्ता में रह चुकी है और किसानों की समस्याओं से भली-भांति परिचित भी है ,फिर उसके निदान के उपायों को अमल में लाने की बजाए सत्ता पाने के लिए इस प्रकार के प्रलोभन क्यो देती है, यद्यपि वे जानते हैं कि यह स्थाई हल नहीं है ।
बाहर हाल मध्यप्रदेश में 50लाख किसानों के 60 हजार करोड़ ,राजस्थान में 85 लाख किसानों के 82 हजार करोड़ एवं छत्तीसगढ़ में 12 लाख किसानों के 34 सौ करोड़ के कर्ज़ माफ़ी की चुनौती अब कांग्रेस पर है ,और इसका भार आम जनता पर कितना पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा, और उसके बाद भी किसानों की समस्या वही रहेगी, किसान फिर कर्ज़ लेंगे और उसे माफ़ कराने के लिए अगली सरकार से अपेक्षा करेंगे ।
ऐसा नहीं है कि यह खेल कोई एक राजनीतिक दल कर रहा है इससे पूर्व भाजपा ने उत्तर प्रदेश ,राजस्थान, महाराष्ट्र एवं कांग्रेस ने पंजाब ,कर्नाटक मैं किसानों के कर्ज माफी को अपना चुनावी मुद्दा बनाया ।
वहीं मोदी सरकार ने किसानों की फसल बीमा योजना, यूरिया की कालाबाजारी रोकने के लिए नीम कोटिंग जैसे कदमों से किसानों को काफी राहत मिली है ,लेकिन जरूरत इस बात की भी है की किसानों की फसलों का उचित मूल्य निर्धारण हो वास्तव में किसानों की असली क़र्ज़ माफ़ी वही होगी।
