“गरीबी ” एक शोध

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भारत, जिसमें बसते हैं सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोग और हम यह भी जानते हैं कि दुनिया के सबसे अमीरों की श्रेणी में भारत के लोग सर्वोच्च स्थान रखते हैं ,भारत की समस्त राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं की संपत्ति का आँकलन करें तो हम पाएंगे कि भारत अभी भी सोने की चिड़िया है , लेकिन भारत में गरीबी एक प्रमुख समस्या है, यह एक शोध का विषय है।
बीमारी की दवा वैद्य जानता है, लेकिन वैद्य उस बीमारी को जड़ से खत्म करना चाहता नहीं है ,कहने का तात्पर्य है कि समस्त राजनीतिक दल गरीबी दूर करने का उपाय जानते हैं ,महज कुछ सालों में ही राजनेता अपनी गरीबी को बड़ी आसानी से दूर कर लेता है ऐसे में यह सवाल उठता है कि देश के समस्त राजनीतिक दल एवं सरकारें देश की गरीबी को दूर क्यों नहीं कर पा रहे हैं ,साल दर साल राजनीतिक दलों के जादूगर बदल जाते हैं पर इन जादूगरों का मायाजाल जनता आज भी समझ नहीं पाई है ।
गरीबी के आँकलन में हमने यह पाया कीभारत में मुख्यतः दो आबादी के क्षेत्र हैं ,पहला ग्रामीण एवं दूसरा शहरी, भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है ,लेकिन आजादी के 70 साल के बाद भारत का किसान आज भी गरीब है ,अर्थशास्त्र की नीति यह कहती है कि मुफ्त देकर किसी को कभी अमीर नहीं बनाया जा सकता ,सही मायने में किसान को उनकी फसलों को उन्नत बनाने के लिए प्रशिक्षित करना एवं उनके उत्पादन का सही मूल्य निर्धारण करना, लेकिन सरकारें ठीक इसका उल्टा करती है, किसानों का कर्ज माफ ,बिजली माफ, ताकि किसान मेहनत करने से बचें और बेईमान हो जाए, किसानों का हक मारकर फायदा व्यापारी को पहुंचाती है, सरकारें किसानों की टोपी उतार कर आम जनता को पहना देती है लेकिन इस नीति से किसानों की समस्या का निदान नहीं हो पाता और वह गरीब का गरीब ही रहता है।
दूसरा शहरी आबादी में युवाओं की प्रमुख आवश्यक्ता “रोजगार” होती है, चाहे वह सरकारी हो या औद्योगिक ,लेकिन सरकार अपनी प्रमुख जिम्मेदारी ,युवाओं को रोजगार को ना देकर, मुफ्त की रेवड़ी बांटना ज्यादा उचित समझती है, एक रुपए किलो गेहूं ,चावल , बिजली फ्री, पानी फ्री और धर्म और जाति के आधार पर बांटकर शिक्षा और नौकरी फ्री ,लेकिन वास्तव में ऐसा करके वह जनता को नाकारा एवं स्वार्थी बना रही है, यह नीति गरीबी हटाने के लिए नाकाफी साबित हुई है ऐसा करके यह फ्री की टोपी आम जनता के सिर का बोझ बढ़ा रही है।

“गरीबी के शोध में हम पाते हैं कि किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम एवं युवाओं को रोजगार मुहैया कराने पर भारत को गरीब शब्द से छुटकारा मिल सकता है।”
एक आंकड़े को जानकर आपको आश्चर्य होगा कि 2018 में विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में 269 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया गया, यह आकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत की वजह से विदेशी कंपनियां अरबपति बन रही है ,और भारत के राजनीतिक दल भारत में गरीबी का रोना रो रहे हैं।

सरकारों को अपनी नीतियों पर चिंतन करने की आवश्यकता है एवं गरीबी को जड़ से खत्म करने की नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है, अन्यथा देश की जनता का लोकतंत्र से विश्वास उठना तय है।


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