पर्दे के पीछे का सच ?

0 minutes, 0 seconds Read
Spread the love

2013 के विधानसभा चुनाव में उज्जैन दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी मोहन यादव से कांग्रेस के तत्कालीन प्रत्याशी जय सिंह दरबार करीब 10000 वोट से हारे थे, 2018 में बीजेपी से उज्जैन दक्षिण में मोहन यादव ही है जबकि कांग्रेस से राजेंद्र वशिष्ठ एवं कांग्रेस से टिकट ना मिलने के चलते जय सिंह दरबार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में है ,और एक बार पुनः उनकी कांग्रेस से निष्कासन प्रक्रिया मैं है ,यहां समझने वाली बात यह है कि यह वही राजेंद्र वशिष्ठ एवं जयसिंह दरबार हैं जोकि 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट ना मिलने पर निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े थे जिसमें वशिष्ठ को 18000 एवं दरबार को 25,000 वोट मिलने के चलते कांग्रेस के प्रत्याशी पंडित योगेश शर्मा की जमानत जप्त हुई थी, अब देखने वाली बात यह है कि दोनों ने कांग्रेसी के विरुद्ध बागी के रूप में चुनाव लड़ा था और कुछ दिन कांग्रेस से बाहर रहने के बाद पुनः कांग्रेस में शामिल हो गए ऐसे में सवाल ये उठता है कि यह अंदर बाहर का खेल जनता के लिए महज दिखावा है ,या पर्दे के पीछे का सच कुछ और है?

वहीं मोदी लहर में जीते मोहन यादव जो सिंहस्थ में हुए कार्यों को अपना बता रहे हैं जबकि वास्तव में सिंहस्थ कार्यों के अलावा वह शुन्य है ,ऐसा कहना है उज्जैन दक्षिण निर्दलीय प्रत्याशी जय सिंह दरबार का, उनकी मानें तो भाजपा पुनः शून्य पर दाव खेल रही है।

यही हाल उज्जैन उत्तर में भी है ,10 सालों से राजनीति से दूर महंत राजेंद्र भारती जिनका कांग्रेस के सर्वे में भी नाम बहोत नीचे था, कांग्रेस पार्टी ने उनको टिकट देकर मेरे साथ अन्याय किया, कुछ यही कहना है कांग्रेस के सर्वे में अपना नाम सबसे ऊपर बताने वाली कांग्रेस नेत्री माया राजेश त्रिवेदी का जोकि उज्जैन उत्तर से कांग्रेस बागी के रूप में निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं और उन पर भी कांग्रेस से निष्कासन की तलवार लटकी हुई है, जबकि बीजेपी उम्मीदवार का नमस्कार से ही चमत्कार हो जाता है।

तो निचोड़ यह है कि, यह राजनीति है यहां जनता किसी चमत्कार होने की लालसा के चलते किसी पार्टी और प्रत्याशी पर विश्वास करती है ,जबकि उम्मीदवारों के लिए पार्टी का कोई महत्व नहीं है ,उन्हें तो कुर्सी चाहिए, चाहे जिस पार्टी से मिले ,पार्टी ने टिकट दिया तो ठीक ,नहीं तो निर्दलीय या पार्टी चेंज और उसके बाद जीते तो शासन करने वाली पार्टी के साथ और हारे तो अपनी जन्म भूमि जिंदाबाद।

असल बात तो यह है कि यह पर्दे के पीछे का खेल जनता की समझ से परे है ,जबकि वास्तव में सिक्के के दोनों पहलू शोले फिल्म के जय के सिक्के जैसे हैं।


Spread the love

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *