बेवफा पंछी

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बस यही अपराध में हर बार करता हूं ,आदमी हूं आदमी पर विश्वास करता हूं, दरअसल इसके अलावा जनता के पास कोई चारा भी नहीं होता, हर चुनाव में चाहे वह लोकसभा ,विधानसभा ,स्थानीय निकाय या पंचायत के, हर राजनैतिक पार्टी अपना चुनाव का मेनिफेस्टो का प्रदर्शन करता है, लेकिन चुनाव के बाद ये चुनावी पंछी ढूंढने से भी नहीं मिलते ,और बड़े आश्चर्य की बात है कि 5 साल तक अपने क्षेत्र में जो व्यक्ति झाँकता तक नहीं ,वह बड़े उदारवादी अंदाज में चुनाव के वक्त हाथ जोड़कर जनसंपर्क को निकलता है ,कई लोग विरोध करते हैं ,गालियां देते हैं ,लेकिन 5 साल में अपनी और उससे ज्यादा अपने परिवार के धन को दुगना करने वाली नेताजी की चमड़ी कि रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता ,और उन्हें ज्ञात भी होता है कि चुनाव में किए हुए वादों को पूरा नहीं करने पर जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी और जनता की मजबूरी है कि चुनाव के वक्त वह या तो कुवें को चुनेगी या खाई को, स्वरूप दोनों का एक जैसा है ,और कोई निर्दलीय डबरिया जीत भी जाती है तो थोड़े दिनों में अपने आप सूख जाएगी ।जनता के विश्वास का हनन तो निश्चित है ,उदाहरण के लिए लोकपाल बिल को लेकर दिल्ली कि सरकार वजूद में आई लेकिन लोकपाल बिल ना लाने पर जनता की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं, प्रधानमंत्री द्वारा सांसदों को एक-एक गांव को गोद लेकर उसे विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई लेकिन सांसदों द्वारा अपने गांव मैं झांका तक नहीं गया ,कोई विधायक ,कोई पार्षद 5 साल में यह तक बता नहीं पाता कि उसका कार्य क्षेत्र कौन सा है ,तो कोई आश्चर्य की बात नहीं, कार्य कराना तो दूर की बात है ,जनता अपना अमूल्य वोट देकर अपने जनप्रतिनिधि को चुनती है लेकिन 5 साल के बाद जनता के हाथ में प्रति रह जाती है और “निधि “नेताजी की जेब में चली जाती है नतीजतन जनता के जनप्रतिनिधि जनता की निधि दिनों दिन खा खा कर गब्बर हो रहे हैं और जनता की तरफ पीछे मुड़के देखते भी नहीं ,उन्हें ज्ञात है की जनता के नाराज होने पर वह उसके स्थान पर उसके भाई को चुन लेगी चेहरा बदल जाएगा लेकिन कर्म वही रहेगा।

यह विषय जनता के नजरिया से बहुत चिंतनीय है ,वक्त रहते हैं जनता को अपने नजरिए में बदलाव करने की आवश्यकता है ,जनता अपने अमूल्य वोट से प्रतिनिधि को चुनती है, और वह जनप्रतिनिधि जब जनता के हक को मारता है तो जनता को चाहिए कि उसके हक की रोटी, नेता के हलक से निकालें और उसे सरे बाजार उजागर करें ताकि कोई अव्वल तो नेता बनने की सोचे नहीं और सोचें भी तो काम करना उसकी मजबूरी बन जाए ,जनता के ऐसा ना करने पर हंस यूं ही दाना दुनकाा ओर कौवा मोती खाता रहेगा और जनता के विश्वास का हनन इन बेवफा पंछियों द्वारा होता रहेगा।


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