“कहना मुश्किल है”।

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मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की ट्रेन अब 230 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पकड़ चुकी है ,कोई स्टेशन पर खड़ा इंतजार ही करता रह जाता है ओर ट्रेन तेजी से निकल जाती है ,कोई चलती ट्रेन मैं बैठने की कोशिश कर रहा है ,और किसी को चलती ट्रेन से उतारा जा रहा है ,कोई एक ट्रेन से उतरकर दूसरी ट्रेन में बैठ रहा है ,और जो नहीं चढ़ पा रहा है वह 11 नंबर की बस पकड़ कर ही चुनावी सफर को तय करने का मन बना रहा है।

इसे एक विडंबना ही कहेंगे कि चुनाव की तारीख तय होने के बाद, बड़े-बड़े दिग्गज इधर से उधर छलांग लगा रहे हैं , नेताओं को टिकट नहीं मिलने पर वह कुछ भी करने पर उतारू हैं, बीजेपी और कांग्रेस दोनों का ही बीपी हर पल बदल रहा है ,हर पल नया समीकरण बन रहा है।

बात उज्जैन की करें तो उज्जैन दक्षिण अभी सस्पेंस बना हुआ है ,और उत्तर में कांग्रेस का उत्तर बाकी है ,घटिया ,बड़नगर ,महिदपुर, आलोट मैं भी धुंध छाई है, इंदौर ,रतलाम में भी घना कोहरा छाया हुआ है, पूरे मध्यप्रदेश के चुनावी मौसम की बात करें तो हर पल मौसम का मिजाज बदल रहा है ,कब ,कहां और किस पर ओले पड़ जाएं ,कहना मुश्किल है ।

पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी में उथल-पुथल मची हुई है ,इस दंगल में अभी और कई दाव पेच और राउंड बाकी है ,जनता इस चुनावी दंगल के हर पहलवान के दाव पैच को देख ओर समझ रही है ,दाव किसका सफल होगा कहना मुश्किल है ।

जाते -जाते सपाक्स की बात भी कर लेते हैं तो पानी शिप्रा के पानी जैसा मटमैला नजर आ रहा है ,230 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है, लेकिन 148 सीट ही जनरल है ,बाकी 35 एससी,47 एसटी की आरक्षित है, उन सीटों का क्या होगा कहना मुश्किल है, अब यह पानी साफ कैसे होगा यह भी कहना मुश्किल है।

बहर हाल सभी पार्टियों के हालात मुश्किल में है इसलिए कुछ भी कहना मुश्किल है।


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